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जब आध्यात्म और विज्ञान मिलते हैं तभी सर्वोदय होता है : महामंडलेश्वर स्वामी परमानंद गिरी

सागर, 08 दिसंबर(वार्ता) महामंडलेश्वर स्वामी परमानन्द गिरी महाराज ने कहा कि जब आध्यात्म और विज्ञान मिलते हैं तभी सर्वोदय होता है।
महामंडलेश्वर स्वामी परमानन्द गिरी डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर और संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित तीन दिवसीय अद्वैत उत्सव के उद्घाटन सत्र में आज मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संतों के हाथ में ही शस्त्र होने चाहिए। विज्ञान भी एक शस्त्र है। अद्वैत सिद्धान्त का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि द्वैत एवं अद्वैत एक दूसरे से जुड़े हैं,द्वैत नहीं है तो अद्वैत को कैसे देखेंगे।उन्होंने कहा कि अद्वैत ही व्यक्ति को आत्मावान बनायेगा और भारत को विश्वगुरू के रूप में स्थापित करेगा।
सत्र के मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित प्रसिद्ध विचारक सुरेश सोनी ने कहा कि सामाजिक जीवन में अद्वैत का ज्ञान कैसे बढ़े, आज इस बात पर चिंतन करने की आवश्यकता है। विश्व भर में बढ़ रही समस्याओं के हल के लिए अद्वैत का सिद्धान्त आज अधिक प्रासंगिक है। समाज में विभेद की दृष्टि होने के कारण ही समस्यायें पैदा हो रही हैं. हमनें प्रकृति को भोग्य मानकर इसका दोहन किया लेकिन हमारे यहाँ प्रकृति के साथ एकात्मता का भाव था। एकात्मता का यह चिंतन आध्यात्म, अर्थशास्त्र, कला एवं समाज शास्त्र में दिखता भी है।
समारोह में उपस्थित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि अद्वैत भारत की माटी और जड़ों में है. सियाराम में सब जग जानी, ये विचार हमारे यहाँ प्राचीन समय से ही चला आ रहा है। समस्त विद्वतजन इस विचार को ही समाज में भेद-भाव को मिटाने वाला बताते हैं. सारी दुनिया एक परिवार है, यही अद्वैतवाद है। हमारे ऋषियों ने कहा है कि केवल प्राणियों में ही जीव नहीं बल्कि समस्त चराचर में है।

पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह ने कहा कि भारतीय दर्शन परम्परा की जितनी भी अवधारणाएँ हैं वे कहीं न कहीं ईश्वर के अस्तित्व को ही प्रमाणित करती हैं। सत्य से साक्षात्कार करना है तो आवरण हटाना होगा। आचार्य शंकर ने यह काम किया है। विज्ञान भी मानता है कि दुनिया व्यवस्थित है, सुन्दर है और उद्देश्यपूर्ण है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित स्वामी परमात्मानंद सरस्वती ने कहा कि जब हम यह कहते हैं कि ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या तब मिथ्या से हमारा अभिप्राय इसके शाब्दिक अर्थ से नहीं होता। नामरूप मिथ्या वस्तु की सत्यता से ही सम्बन्धित है। मिथ्या का आधार ही सत्यता से है। स्वर्ण यदि सत्य है तो अलंकार मिथ्या है। दोनों का ही अस्तित्व है। परन्तु संसार ने मिथ्या को ही सत्य मान लिया है।
स्वागत वक्तव्य डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राघवेन्द्र प्रसाद तिवारी ने प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि अद्वैत वेदान्त दर्शन ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है और मानव एवं प्रकृति के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने में भी इस दर्शन की महती भूमिका रही है।
सं.व्यास
वार्ता
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