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कोरोना महामारी के बीच मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन के लिए याद किया जाएगा वर्ष 2020

भोपाल, 01 जनवरी (वार्ता) वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के कारण मध्यप्रदेश में भी उपजीं अभूतपूर्व स्थितियों के बीच वर्ष 2020 इस राज्य में पंद्रह माह पुरानी कमलनाथ सरकार के पतन के अलावा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता शिवराज सिंह चौहान की मुख्यमंत्री के रूप में चौथी बार ताजपोशी समेत अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा।
पंद्रह वर्षों बाद दिसंबर 2018 में सत्ता में आयी कांग्रेस सरकार के लिए वर्ष 2020 की शुरूआत एक तरह से सामान्य रही, लेकिन फरवरी के दूसरे सप्ताह से प्रारंभ हुए राजनैतिक घटनाक्रम कुछ तरह से घटे और लगभग सवा माह में ही इस सरकार का पतन हो गया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ को श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा और उनके संबंध में दिया गया बयान ' तो उतर जाएं सड़क पर' अंतत: भारी पड़ा।
श्री कमलनाथ और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की जोड़ी से नाराज चल रहे श्री सिंधिया ने मार्च माह के दूसरे सप्ताह में भाजपा का विधिवत दामन थाम लिया और उनके समर्थकों समेत लगभग दो दर्जन कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देकर कमलनाथ सरकार को अल्पमत में ला दिया, जिसके चलते 20 मार्च को श्री कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा और 23 मार्च को राज्य में एक बार फिर भाजपा सरकार का गठन हुआ और श्री शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
इसके पहले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में 15 फरवरी को युवा नेता विष्णुदत्त शर्मा की ताजपोशी श्री राकेश सिंह के स्थान पर हुयी और उनके आते ही प्रदेश भाजपा के लिए संयोगवश अनेक प्रसन्नता देने वालीं घटनाएं लगातार घटित हुयीं। इसलिए सार्वजनिक मंचों पर श्री चौहान श्री शर्मा को 'शुभंकर' के रूप में पुकारने लगे।
दरअसल श्री सिंधिया ने 11 फरवरी को जब राज्य की अपनी ही दल की कमलनाथ सरकार को चेताते हुए कहा था कि वे आंदोलनरत कर्मचारियों की मांगों पर ध्यान दें, अन्यथा उन्हें सड़क पर उतरना पड़ेगा। इसके बाद मीडिया के सवालों के जवाब में श्री कमलनाथ ने श्री सिंधिया को लक्ष्य कर बयान दे दिया कि 'तो वे उतर जाएं सड़क पर'। इसके बाद श्री सिंधिया के खामोशी के साथ उठाए गए कदमों ने राज्य के सियासी इतिहास में नया इतिहास लिख दिया।
तीन मार्च को वरिष्ठ कांग्रेस नेता श्री दिग्विजय सिंह के ट्वीट के बाद नया सियासी ड्रामा राज्य में प्रारंभ हुआ और अंतत: 17 दिनों के अंदर ही कमलनाथ सरकार गिर गयी। श्री सिंह ने ट्वीट में आरोप लगाया कि भाजपा नेता कांग्रेस विधायकों को प्रलोभन देकर अपने साथ ले जा रहे हैं। इसके बाद आरोप प्रत्यारोपों का दौर प्रारंभ हुआ और श्री सिंधिया ने दिल्ली में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बीच औपचारिक तौर पर इस दल का परचम थाम लिया। इसके बाद लगभग दो दर्जन कांग्रेस विधायकों ने विधायक पद से त्यागपत्र देकर कमलनाथ सरकार के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी।
इन अभूतपूर्व राजनैतिक घटनाक्रमों के बीच 20 मार्च को मध्यप्रदेश में भी कोरोना ने दस्तक दे दी थी। इस दिन जबलपुर में एक व्यापारी के कोरोना से संक्रमित होने का पहला मामला प्रकाश में आया। इसके बाद काेेराेना ने जबलपुर के अलावा भोपाल और इंदौर में भी दस्तक दे दी। मार्च माह के अंतिम सप्ताह में कोरोना संक्रमण इंदौर, भोपाल और जबलपुर के अलावा कुछ अन्य शहरों में भी फैलने लगा और देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद प्रत्येक नागरिक भय और अनिष्ट के साए में रहने को मजबूर हो गए। अनेक 'फ्रंट लाइनर कोरोना वॉरियर्स' के भी संक्रमित होने की खबरें आने लगीं। कुछ पुलिस कर्मचारियों के शहीद होेने की घटनाओं ने भी भय के माहौल को और भयानक कर दिया।
इसके बाद अप्रैल और मई माह में जहां कोरोना के मामले बढ़ते रहे और इस वजह से अनेक लोगों की जान जाती रहीं, प्रवासी श्रमिकों का देश के विभिन्न हिस्सों से मध्यप्रदेश के रास्ते बिहार, उत्तरप्रदेश और अन्य राज्यों में अपने घर वापसी का क्रम चलता रहा।
राज्य के इंदौर, बड़वानी और अन्य राज्यों की सीमाओं पर प्रशासन, गैर सरकारी संगठनों और नागरिकों के प्रयासों से हजारों, लाखों की संख्या में गुजर रहे प्रवासी श्रमिकों को भोजन, पानी, अौषधियां और अन्य सामग्री मुहैया कराने के प्रयास युद्ध स्तर पर किए गए। वहीं मुख्यमंत्री श्री चौहान पद संभालते ही 23 मार्च से ही प्रतिदिन कोरोना मामलों की समीक्षा करते आ रहे थे। सरकार और प्रशासन के प्रयासों से कोराेना जांच की संख्या में वृद्धि की जाती रही। कोरोना वॉरियर्स को पीपीई किट और अन्य सामग्री मुहैया करायी गयी। वहीं अस्पतालों में भी कोरोना के इलाज की व्यवस्थाएं बनाने पर सबसे अधिक जोर दिया गया।
इन प्रयासों के बीच कोरोना संक्रमण राज्य के सभी 52 जिलों में पहुंच गया और जुलाई अगस्त में कोरोना संक्रमण अपने उच्चतर स्तर पर पहुंच गया। पच्चीस जुलाई को श्री चौहान स्वयं कोरोना संक्रमण का शिकार हो गए और वे दस दिन से अधिक समय तक अस्पताल में भर्ती रहे। हालाकि उन्होंने अस्पताल से ही अपना सरकारी कामकाज जारी रखा। इसके बाद अक्टूबर नवंबर में फिर से कोरोना संक्रमण के मामले बढ़े और अब तक कुल 2,41,791 व्यक्ति कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुके हैं और नौ माह से अधिक के समय में 3606 व्यक्तियों की जान जा चुकी है। हालाकि 2,28,831 व्यक्ति कोरोना संक्रमण को मात देने में सफल भी रहे। वर्तमान में एक्टिव केस 10 हजार से घटकर 9354 पर आ गए हैं। यहां एक और सकारात्मक बात यह रही कि लोगों में कोरोना को लेकर भय कम हो गया है और कोरोना वैक्सीन की खुराक लोगों तक पहुंचाने के लिए सभी आवश्यक तैयारियां भी पूरी कर ली गयी हैं।
राज्य में कोरोना संकटकाल के बीच ही अक्टूबर नवंबर माह में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए, जिसमें भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 19 सीटों पर विजय हासिल की। कांग्रेस मात्र नौ सीटों पर ही विजय हासिल कर सकी और उसका सत्ता में वापसी की तमन्ना, स्वप्न बनकर ही रह गयी। इन उपचुनावों के बाद राज्य में श्री चौहान के नेतृत्व में भाजपा सरकार और मजबूत होकर उभरी। वहीं मानसून में लगातार बारिश ने अनेक जिलों में बारिश का कहर भी बरपाया, लेकिन सरकार के पुख्ता प्रबंधों के कारण जनहानि नहीं के बराबर हुयी। हालाकि फसलों और संपत्तियों को प्रभावित जिलों में नुकसान अवश्य पहुंचा।
कोरोना संकटकाल के बीच ही मॉस्क कल्चर, सोशल डिस्टेंसिंग और वर्चुअल मीटिंग्स का दौर प्रारंभ हुआ, जो अब एक तरह से सामान्य जीवन का हिस्सा बन गया है। हालाकि वर्ष के अंत तक कोरोना को लेकर स्थितियां काफी हद तक नियंत्रित भी नजर आने लगीं और अब सभी लोग बेसब्री से कोरोना वैक्सीन का इंतजार करते हुए नए साल में नयी उम्मीद लगाए बैठे हैं, ताकि अर्थव्यवस्था और अन्य क्षेत्रों में भी स्थितियां सामान्य हो सकें।
प्रशांत
वार्ता
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