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खरगोन में पाया गया पीला पलाश

खरगोन 11 फरवरी (वार्ता) मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के सतपुड़ा की पहाड़ियों में बेहद कम देखे जाना वाला पीला पलाश पाया गया है।
आमतौर पर केसरिया रंग का पलाश बहुतायत में पाया जाता है लेकिन पीला पलाश कम ही देखने को मिलता है। खरगोन जिले के पीपल झोपा मार्ग पर स्थित बनहूर गांव की ढलान पर और भीकनगांव के काकरिया गोरखपुर जाने वाली सड़क पर कमल नार्वे के खेत की मेड पर करीब 12 मीटर ऊंचे पीले पलाश की मनोहारी छटा देखते ही बनती है। कमल नार्वे के पड़ोसी जवान सिंह ने बताया कि करीब 3 वर्ष से इस पेड़ में पीले पलाश आ रहे हैं।
ऋग्वेद में भी वर्णित पलाश को टेसू, खाकरा, रक्त पुष्प, ब्रह्म कलश, किंशुक जैसे अनेक नामों से जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा है। यह उत्तर प्रदेश व झारखंड का राजकीय पुष्प भी है।
पहाड़ी अंचलों में प्रमुखता से पाए जाने वाला केसरिया रंग के पलाश के फूल से होली के रंग बनाए जाते थे। ग्रामीण जन पलाश के पत्ते, डंठल छाल, फली, फूल और जड़ों को विभिन्न बीमारियों के उपचार में काम लेते हैं। प्राचीन काल से इसके पत्तों का उपयोग पत्तल व दोने बनाने में होता आया है। पलाश से निकलने वाली गोंद को कमरकस कहा जाता है।
आमतौर पर केसरिया रंग के पलाश ही देखे जाते हैं किंतु पीले पलाश के बारे में खरगोन स्थित शासकीय महाविद्यालय से रिटायर वनस्पति शास्त्र की प्राध्यापक पुष्पा पटेल ने बताया कि दरअसल प्रभावी जींस कमजोर होने और अप्रभावी जींस ताकतवर हो जाने के चलते ऐसा हुआ है। उन्होंने कहा कि दरअसल यह जींस की असमानता के कारण होता है। उन्होंने बताया कि पीले पलाश के कुछ वृक्ष गुजरात, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा मंडला और बालाघाट के जंगलों में देखे गए हैं।
उन्होंने कहा कि सफेद रंग का भी पलाश पाया जाता है जिसका कारण भी जेनेटिक डिस्टरबेंस ही है। उन्होंने कहा कि रंग की भिन्नता से इसके औषधीय गुणों में ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। सफेद पलाश औषधीय दृष्टि से अधिक उपयोगी माना जाता है।
सं नाग
वार्ता
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