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शिक्षा से वंचित वर्गों में शिक्षा का विस्तार किया जाये: पटेल

भोपाल, 01 अक्टूबर (वार्ता) मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने कहा कि विश्वविद्यालय सुदूर अंचल और वंचित वर्गों तक शिक्षा के विस्तार के द्वारा नवीनतम ज्ञान, विज्ञान और नवाचारों को पहुँचायें। उनको राष्ट्र के विकास की मुख्य-धारा में शामिल होनें में सहयोगी बनें।
श्री पटेल मिंटो हॉल में भोज मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना के 29वें वर्ष में पहली बार आयोजित किये गये स्थापना दिवस कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नयी शिक्षा नीति को जमीनी हकीकत बनाने में दूरवर्ती शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहा कि शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने के लिए उसका सहज, सुलभ और कम खर्चीली होना जरूरी है। उन्होंने शिक्षा को बंधन मुक्त बनाने, विद्यार्थियों को उनकी इच्छा और जरूरत के अनुसार शिक्षा उपलब्ध कराने और शिक्षा में भाषाई बाधाओं को खत्म करने के लिए कहा है।
उन्होंने शिक्षा की दिव्यांगजन तक पहुँच बढ़ाने और ऑनलाइन हुनर आधारित पाठ्यक्रमों की जरूरत बताई। विद्यार्थियों को कोर्सो के संबंध में प्रवेश से पूर्व जानकारी देने और कैरियर गाइडेंस की व्यवस्था करने के लिए कहा है। शिक्षा को विद्यार्थी परक बनाने के साथ ही विज्ञान, उद्योग और अकादमिक क्षेत्रों की आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रमों के संयोजन की जरूरत बताई। उन्होंने उच्च शिक्षा मंत्री द्वारा सकल नामांकन में वृद्धि के लिए किए जा रहें प्रयासों की सराहना की। विश्वविद्यालय द्वारा बंदियों की शिक्षा के लिए की गई पहल पर बधाई दी। राज्यपाल श्री पटेल ने भोज दर्पण 2021 स्मारिका का विमोचन किया।
उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि प्रदेश में शिक्षा का दायरा बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे है। सभी जिलों में सर्वसाधन सम्पन्न अग्रणी महाविद्यालय और सभी विधानसभा क्षेत्रों में कम से कम एक महाविद्यालय स्थापित किए जाएँगे। उन्होंने कहा कि दूरवर्ती शिक्षा की पहुँच को डेढ़ लाख से बढ़ाकर 5 लाख करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने राजा भोज की स्मृतियों का उल्लेख करते हुए विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस की शुभकामनाएँ दी।
मुख्य वक्ता भारतीय शिक्षण मंडल के अध्यक्ष मुकुल कानेटकर ने कहा कि भारत को विश्व गुरू का दर्जा दिलाने के लिए पहले आत्मगुरू बनना होगा। शिक्षा के सभी निर्णय शिक्षकों द्वारा लिए जाने चाहिए। शिक्षा विद्यार्थी के पास पहुँचे। इसी में शिक्षा की सार्थकता है। विद्यार्थी चन्द्रगुप्त ने शिक्षक चाणक्य को नहीं खोजा था। चाणक्य ने शिष्य चन्द्रगुप्त की प्रतिभा को पहचाना था। यही भारतीय शिक्षा व्यवस्था का मूल है।
उन्होंने बताया कि ब्रिटिश शासनकाल में बाम्बे प्रेसीडेंसी की उच्च शिक्षा के संबंध में कम्पनी के एक अधिकारी विलियम एडम के विवरण में बताया गया है कि ब्रिटिश आगमन के पूर्व समस्त गाँवों में सभी के लिए शिक्षा की सुविधा उपलब्ध थी। देश के एक भाग बाम्बे प्रेसीडेंसी के अंतर्गत एक लाख 13 हजार से ज्यादा भारतीय उच्च शिक्षा के केन्द्र होने का जिक्र किया है। उन्होंने शिक्षा की उसी व्यवस्था को पुर्नस्थापित करने का प्रयास नई शिक्षा नीति को बताया।
कुलपति जयंत सोनवलकर ने कहा कि दूरस्थ शिक्षा और दिव्यांगजन शिक्षण का विशेष पाठ्यक्रम संचालित करने वाला यह पहला विश्वविद्यालय है। पाठ्यक्रम के विद्यार्थी दुनिया के 20 देशों में कार्यरत है। विशिष्ट शिक्षा के नये पाठ्यक्रम शुरू करने राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और सांची विश्वविद्यालयों के साथ एम.ओ.यू. भी किये गए हैं। विश्वविद्यालय ने बंदियों को 50 प्रतिशत शुल्क छूट के साथ शिक्षा की सुविधा दी है। प्रदेश के 100 महाविद्यालयों में विडियों काँफ्रेंस के द्वारा लाइव क्लासें भी संचालित है। आभार प्रदर्शन कुल सचिव एल.एस.सोलंकी ने किया।
नाग
वार्ता
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