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आदिवासी परिवारों को मिला पारंपरिक पेंटिंग के जरिए अतिरिक्त आय का साधन

बड़वानी, 08 जनवरी (वार्ता) मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के सेंधवा वन मंडल क्षेत्र के आदिवासी परिवारों ने पारंपरिक पेंटिंग सीख कर हाल ही में संपन्न ‘अंतर्राष्ट्रीय वन मेले’ में इसकी प्रदर्शनी और बिक्री से अपनी साख बनाने के उपरांत अब प्रवासी भारतीय सम्मेलन में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
सेंधवा के वन मंडलाधिकारी अनुपम शर्मा ने बताया कि हाल ही में भोपाल में मध्यप्रदेश वन विभाग एवं राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वन मेले में क्षेत्र के आदिवासी ग्रामीणों की करीब 100 पेंटिंग्स की बिक्री हुई है। बची हुई पेंटिंग्स को पेंच टाइगर रिजर्व भेजा गया है, जहां पर्यटक उन्हें पसंद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मध्य पूर्व देश के एक इंटीरियर डिजाइनर ने आमिर अली ने 500 से अधिक पेंटिंग्स खरीदने में रुचि दिखाई है। इसके अलावा इंदौर में आयोजित प्रवासी भारतीय सम्मेलन में भी वन विभाग के स्टाल में 39 पेंटिंग्स प्रदर्शनी व बिक्री के लिए रखी गई है।
उन्होंने बताया कि 2 महीने पूर्व सेंधवा वन विभाग ने ग्रीन इंडिया मिशन के अंतर्गत स्वरोजगार विकास एवं जनजातीय संस्कृति के पुनर्जीवन हेतु आदिवासी पारंपरिक चित्रकला प्रशिक्षण का आयोजन किया था। इसमें भील चित्रकार पद्मश्री भूरी बाई बारिया, शांता भूरिया, अनिल बारिया, सुदर्शन शॉ और सुरभि भदानी द्वारा साथ सात दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया था। उन्होंने बताया कि सेंधवा वन विभाग द्वारा पौधारोपण के दौरान प्लांटेशन के प्लास्टिक कचरे को एकत्रित कर उसे भेजा गया था और उससे प्राप्त राशि से चित्रकला सामग्री खरीद कर प्रतिभागियों में वितरित की गई थी।
बचपन से चित्रकला में रुचि रखने वाली और फिल हाल प्राइवेट ट्यूशन करने वाली सरिता डुडवे ने कहा कि वन विभाग की मदद से हमें पेंटिंग कला को निखारने में मदद मिली और प्लेटफार्म भी मिला। 29 वर्षीय गृहणी रूपाली सोलंकी ने कहा कि पेंटिंग का प्रशिक्षण हमारे लिए अतिरिक्त आय का साधन बनेगा। एक अन्य प्रतिभागी सुंदर ने कहा कि पहली बार हमारी संस्कृति को हमने पेंटिंग्स में प्रदर्शित किया है और यह निश्चित तौर पर रोजगार का साधन बन सकती है। दो वर्ष पूर्व पिता को खोने के बाद सुंदर ने पढ़ाई छोड़कर पुताई का काम आरंभ किया था।
दो बच्चों की माँ प्रियंका ने बताया कि बचपन में ही उसने अपने पिता को खो दिया था जिसके चलते उसकी मां ने सिलाई कर उनका पालन पोषण किया था। उसने बताया कि वह भी अपनी मां के काम में हाथ बँटाती थी लेकिन अब उसे एक नई दिशा मिली है। अभय ने कभी पेंटिंग नहीं की थी लेकिन वह अब तेजी से इसे सीख रहा है।
पेंटिंग सिखाने वाली पद्मश्री भूरी बाई ने कहा कि इस तरह की प्रशिक्षण कार्यशाला लगातार आयोजित होना चाहिए ताकि आदिवासी इसे आय का साधन भी बना सके। अभय की पेंटिंग भोपाल में सबसे ज्यादा ₹1800 में बिकी और वह इससे उत्साहित है।
वन मंडलाधिकारी श्री शर्मा ने बताया कि उन्होंने क्षेत्र का दौरा करने पर पाया कि आदिवासी जन्म से मरण तक परंपरा के नाम पर शराब का उपयोग कर रहे हैं लेकिन वे अपनी संस्कृति को किसी रचनात्मक कार्य के माध्यम से प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने वन अमले के माध्यम क्षेत्र से 18 से 40 वर्ष के आदिवासी मूल के चित्रकला में रुचि रखने वाले कम आय श्रेणी के मजदूर, गृहणी और विद्यार्थी आदि चुने और उन्हें पहले चरण में सुदर्शन शा और दूसरे चरण में भूरी बाई व अन्य से प्रशिक्षित करवाया।
उन्होंने कहा कि भोपाल में आयोजित इस मेले में रिसोर्ट और होटलों के मालिक के अलावा मध्य पूर्व देशों में इंटीरियर डेकोरेशन का काम करने वालों ने भी इन पेंटिंग में रुचि दिखाई। उन्होंने बताया कि फिलहाल छात्रों को प्रशिक्षण तो दिया गया है लेकिन लाभ हानि के इस व्यवसाय से दूर रखा गया है।
उन्होंने कहा कि इन चित्रकारों की कलाकारी उन्नत होगी और वे तेजी से बेहतर पेंटिंग्स बना पाएंगे। उन्होंने बताया कि मेले में आए राज्यपाल मंगूभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वन मंत्री विजय शाह तथा अन्य विशिष्ट अतिथियों ने चित्रकारों की भूरि भूरि प्रशंसा की।
सं बघेल
वार्ता
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