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बस्तर के अति संवेदनशील इलाके के बच्चे और ग्रामवासियों ने ध्वजारोहण में लिया हिस्सा

जगदलपुर, 26 जनवरी (वार्ता) छत्तीसगढ के दक्षिण बस्तर के अतिसंवेदनशील इलाके से बारह हजार से अधिक आदिवासी छात्र-छात्राएं सहित दो सौ पचास ग्रामवासियों ने हर्षोल्लास के साथ ध्वजारोहरण में हिस्सा लिया।
गांव को सजाकर इस राष्ट्रीय पर्व का अपने पर्व से अधिक मान-सम्मान देकर गांव में रैली निकालकर गांव के विकास के नारे लगाते रहे, क्याेंकि यह इलाका अत्यंत संवेदनशील है, जहां माओवादी नक्सली संगठन हमेशा राष्ट्रीय पर्व का बहिष्कार करते आए हैं, जिसके चलते 18 साल तक बीजापुर तथा सुकमा जिले के स्कूल बंद पड़े थे जो अब खुल गए। अब उन्होंने बता दिया कि शिक्षा, विकास के साथ हम आगे बढ़ सकते हैं।
बीजापुर जिले के कलेक्टर राजेन्द्र कटारा ने बताया कि पूरा गांव दुरस्थ अंचलों के स्कूलों में पिछले 18 साल के बाद ध्वजारोहण में 18 साल से शिक्षा से वंचित सैकड़ो गाँवों में स्कूलों की घंटीयां बजते ही बच्चों के आने से फिर से रौनक लौट आयी है। सरकार की पहल, जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के प्रयासों से दुर्गम और अतिसंवेदनशील मनकेली , पेदाकोरमा गोरना, पेदाजोजेर, कमकानार, पुसनार, मेटापाल, पालनार, मल्लूर सहित 194 स्कूलो के 18 साल बाद खोले जाने से 7000 बच्चों को शिक्षा के अधिकार से जोड़ने में कामयाबी मिली है।
यह कामयाबी नक्सली ईलाको में एक बड़े बदलाव की शुरूआत है, जिसके जरिये शिक्षा के बुनियादी अधिकार से वंचित बच्चों को नयी दिशा मिलेगी। वहीं ग्रामीणों को मुख्य धारा में लाने की शासन की मुहिम कामयाब हो रही है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2005 में मओवाद के खिलाफ सलवा-जुडूम अभियान और नक्सली आतंक के चलते बीजापुर के 200 से ज्यादा स्कूल दहशत के साये में बंद हो गये। इन गाँवों में स्कूलों के साथ-साथ शासन की सारी योजनाएं भी ठप्प हो गई। इन ईलाको के ग्रामीण माओवादियों के जनताना सरकार के प्रभाव में शासन के सारी योजनाओं और अधिकार से वंचित हो गये। इन हालातो के बीच छत्तीसगढ़ में सरकार बदलने के साथ माओवाद प्रभावित ईलाको में ग्रामीणों के विश्वास जीतने और मुख्यधारा में लाने की कवायद शुरू हुई और एक सकारात्मक माहौल बनाने का प्रयास किया गया।
इन ईलाको में मैदानी कर्मचारियों के जरिये पढ़े-लिखे युवाओं और ग्रामीणों से संवाद स्थापित कर बच्चों के भविष्य को पटरी पर लाने की मुहिम शुरू की गई। कई दौर की बात-चीत और प्रयासों के बाद ग्रामीण स्कूलों को फिर से शुरू करने पर राजी हुये जिसके बाद जिला प्रशासन ने स्कूल शुरू करने की मुहिम को अमलीजामा पहनाया।
श्री कटारा ने बताया कि इन इलाको में स्कूल खोलना एक चुनौती भरे सफर से कम नही रहा है। दुर्गम ईलाके, नदी-नाले, पहाड़ो की बांधाओ और माओवादी प्रभाव के बीच इन इलाको में पहुँच पाना आम तैार पर आसान नही है। बारूदी रास्ते और माओवादियों की दहशत किसी भी इंसान के कदम यहां जाने से रोक देती है। इन हालातों में इन चुनौतियों के बीच ग्रामीणों से बात कर सकारात्मक माहौल पैदा कर अविश्वास की खाई को दूर किया गया जिसके बाद शिक्षा के अधिकार से वंचित हजारो बच्चों के सुनहरे भविष्य की राह आसान हो पायी।
इधर, सुकमा जिले के शिक्षा अधिकारी नितीन डढसेना ने बताया कि नक्सलवाद के चलते पिछले पन्द्रह सालों से 123 स्कूल बंद पड़े थे, जिनमें सौ प्राथमिक, बाइस माध्यमिक एवं एक हाईस्कूल शामिल रहा। लेकिन अब 123 स्कूलाें के चार हजार से अधिक बच्चे स्कूल जाने लगे और उन्होंने आज बढ़चढ़कर गणतंत्र दिवस में हिस्सा लिया।
उन्होंने बताया कि सम्पूर्ण सुविधाओं के साथ उनके मूल ग्रामों में संचालित किए जाने से यहां के छात्राओं का आत्मविश्वास बढ़ा है। यह ग्रामीण, शासन-प्रशासन के आपसी समन्वय-तालमेल संवाद और मजबूत संकल्प का सुखद परिणाम है।
सं बघेल
वार्ता
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