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मनोरंजन


जब मुकेश के कहने पर अनिल विश्वास ने गाना छोड़ दिया

जब मुकेश के कहने पर अनिल विश्वास ने गाना छोड़ दिया

(जन्मदिवस 07 जुलाई के अवसर पर) मुंबई 06 जुलाई (वार्ता) भारतीय सिनेमा जगत में अनिल विश्वास को एक ऐसे संगीतकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने मुकेश.तलत महमूद समेत कई पार्श्वगायकोें को कामयाबी के शिखर पर पहुंचाया। मुकेश के रिश्तेदार मोतीलाल के कहने पर अनिल विश्वास ने मुकेश को अपनी एक फिल्म में गाने का अवसर दिया था लेकिन उन्हें मुकेश की आवाज पसंद नहीं आयी बाद में उन्होंने मुकेश को वह गाना अपनी आवाज में गाकर दिखाया। इस पर मुकेश ने अनिल विश्वास ने कहा,“दादा बताइये कि आपके जैसा गाना भला कौन गा सकता है यदि आप ही गाते रहेंगे तो भला हम जैसे लोगों को कैसे अवसर मिलेगा।” मुकेश की इस बात ने अनिल विश्वास को सोचने के लिये मजबूर कर दिया और उन्हें रात भर नींद नही आयी। अगले दिन उन्होंने अपनी फिल्म ..पहली नजर ..में मुकेश को बतौर पार्श्वगायक चुन लिया और निश्चय किया कि वह फिर कभी व्यावसायिक तौर पर पार्श्वगायन नही करेंगे। अनिल का जन्म 07 जुलाई 1914 को पूर्वी बंगाल के वारिसाल (अब बंगलादेश) में हुआ था। बचपन से ही उनका रूझान गीत संगीत की ओर था। महज 14 वर्ष की उम्र से ही उन्होंने संगीत समारोह में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था जहां वह तबला बजाया करते थे। 


            वर्ष 1930 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिय छिड़ी मुहिम में अनिल विश्वास भी कूद पडे। इसके लिये उन्होनें अपनी कविताओं का सहारा लिया। कविताओं के माध्यम से अनिल देशवासियों मे जागृति पैदा किया करते थे। इसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वर्ष 1930 में अनिल कलकत्ता के रंगमहल थियेटर से जुड गये जहां वह बतौर अभिनेता.पार्श्वगायक और सहायक संगीत निर्देशक काम करते थे ।वर्ष 1932से 1934 वह थियेटर से जुड़े रहे। उन्होंने कई नाटकों में अभिनय और पार्श्वगायन किया। रंगमहल थियेटर के साथ ही अनिल हिंदुस्तान रिकार्डिंग कंपनी से भी जुड़े। वर्ष 1935 में अपने सपनो को नया रूप देने के लिये वह कलकत्ता से मुंबई आ गये। वर्ष 1935 में प्रदर्शित फिल्म ‘धरम की देवी’ से बतौर संगीत निर्देशक अनिल ने अपने सिने कैरियर की शुरूआत की। साथ ही फिल्म में उन्होंने अभिनय भी किया। वर्ष 1937 में महबूब खान निर्मित फिल्म ‘जागीरदार’ अनिल के सिने कैरियर की अहम फिल्म साबित हुयी जिसकी सफलता के बाद बतौर संगीत निर्देशक वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गये। वर्ष 1942 में अनिल बांबे टॉकीज से जुड़ गये और 2500 रुपये मासिक वेतन पर काम करने लगे। 


            वर्ष 1930 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिय छिड़ी मुहिम में अनिल विश्वास भी कूद पडे। इसके लिये उन्होनें अपनी कविताओं का सहारा लिया। कविताओं के माध्यम से अनिल देशवासियों मे जागृति पैदा किया करते थे। इसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वर्ष 1930 में अनिल कलकत्ता के रंगमहल थियेटर से जुड गये जहां वह बतौर अभिनेता.पार्श्वगायक और सहायक संगीत निर्देशक काम करते थे ।वर्ष 1932से 1934 वह थियेटर से जुड़े रहे। उन्होंने कई नाटकों में अभिनय और पार्श्वगायन किया। रंगमहल थियेटर के साथ ही अनिल हिंदुस्तान रिकार्डिंग कंपनी से भी जुड़े। वर्ष 1935 में अपने सपनो को नया रूप देने के लिये वह कलकत्ता से मुंबई आ गये। वर्ष 1935 में प्रदर्शित फिल्म ‘धरम की देवी’ से बतौर संगीत निर्देशक अनिल ने अपने सिने कैरियर की शुरूआत की। साथ ही फिल्म में उन्होंने अभिनय भी किया। वर्ष 1937 में महबूब खान निर्मित फिल्म ‘जागीरदार’ अनिल के सिने कैरियर की अहम फिल्म साबित हुयी जिसकी सफलता के बाद बतौर संगीत निर्देशक वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गये। वर्ष 1942 में अनिल बांबे टॉकीज से जुड़ गये और 2500 रुपये मासिक वेतन पर काम करने लगे।


            वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म ‘अनोखा प्यार’ अनिल विश्वास के सिने कैरियर के साथ..साथ व्यक्तिगत जीवन में अहम फिल्म साबित हुयी। फिल्म का संगीत तो हिट हुआ ही साथ ही फिल्म के निर्माण के दौरान उनका झुकाव भी पार्श्वगायिका मीना कपूर की ओर हो गया। बाद में अनिल और मीना कपूर ने शादी कर ली। साठ के दशक में अनिल ने फिल्म इंडस्ट्री से लगभग किनारा कर लिया और मुंबई से दिल्ली आ गये। इस बीच उन्होंने सौतेला भाई.छोटी छोटी बातें जैसी फिल्मों को संगीतबद्ध किया। फिल्म ‘छोटी छोटी बाते’ हालांकि बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं रही लेकिन इसका संगीत श्रोताओं को पसंद आया। इसके साथ ही फिल्म राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित की गयी। वर्ष 1963 में अनिल दिल्ली प्रसार भारती में बतौर निदेशक काम करने लगे और वर्ष 1975 तक काम करते रहे। वर्ष 1986 में संगीत के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने संगीतबद्ध गीतों से लगभग तीन दशक तक श्रोताओं का दिल जीतने वाले यह महान संगीतकार 31 मई 2003 को इस दुनिया को अलविदा कह गये। 


 

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