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नैनीताल-उधमसिंह नगर में दो दिग्गजों में मुकाबला

(रवीन्द्र देवलियाल)
नैनीताल, 25 मार्च (वार्ता) कांग्रेस महासचिव एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तथा भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अशोक भट्ट के मैदान में उतरने से उत्तराखंड की नैनीताल-ऊधमसिंह नगर सीट सबसे खास हो गयी है और यहां का चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है।
भाजपा ने वर्तमान सांसद भगत सिंह कोश्यारी के स्थान पर इस बार श्री अजय भट्ट पर दांव लगाया है वहीं कांग्रेस ने हरीश रावत को यहां पहली बार मैदान में उतारा है। दाेनों प्रत्याशी इस सीट के लिए नये हैं। इससे पहले कांग्रेस के के सी सिंह बाबा 2004 और 2009 में इस सीट पर लगातार दो बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। पिछली बार 2014 में मोदी लहर में भगत सिंह कोश्यारी ने के सी सिंह बाबा को रिकॉर्ड 284717 मतों से मात दी थी।
चुनावी रणनीति के रूप से भी देखा जाए तो फिलहाल कांग्रेस, भाजपा के मुकाबले पिछड़ती दिखायी दे रही है। भाजपा बहुत पहले से ही चुनावी मोड में आ गयी थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दोनों मंडलों में दो रैलियां आयोजित करके भाजपा ने पहले ही माहौल अपने पक्ष में कर लिया है।
जहां तक प्रत्याशियों की बात है तो पहाड़ी मतदाता बहुल इस सीट पर दोनों उम्मीदवार पहाड़ से संबंध रखते हैं और दोनों अल्मोड़ा जिले के निवासी हैं। दोनों इस सीट पर पहली बार भाग्य आजमा रहे हैं। दोनों ही वर्तमान में किसी भी संवैधानिक पद पर तैनात नहीं हैं। दोनों को ही 2017 में हुये पिछले विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। श्री भट्ट को प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए हार का मुंह देखना पड़ा था, वहीं हरीश रावत को मुख्यमंत्री रहते हुए शिकस्त का सामना करना पड़ा था। श्री भट्ट अपनी परंपरागत रानीखेत से हार का सामना करना पड़ा तो श्री रावत को दो विधानसभा सीटों किच्छा और हरिद्वार में हार का मुंह देखना पड़ा। यही नहीं श्री रावत को 2014 के लोकसभा चुनाव में हरिद्वार सीट पर भाजपा के निवर्तमान सांसद रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने शिकस्त दी थी।
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो इस सीट पर भाजपा के मुकाबले कांग्रेस अधिक मजबूत दिखायी देती है। कांग्रेस इस सीट पर आधे से अधिक बार जीत हासिल कर चुकी वहीं भाजपा ने मात्र तीन बार इस सीट पर जीत हासिल की है। इस बार कांग्रेस ने ठाकुर प्रत्याशी पर दांव लगाया है तो भाजपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। बतौर ब्राह्मण प्रत्याशी एन डी तिवारी, के सी पंत और उनकी धर्मपत्नी इला पंत इस सीट पर तीन-तीन बार जीत हासिल कर चुके हैं। एक बार सी डी पांडे ने ब्राह्मण प्रत्याशी के तौर पर विजयीश्री हासिल की है।
1957 में अस्तित्व में आयी इस सीट पर शुरू से ही कांग्रेस का कब्जा रहा। बीच में 1977 में भारतीय लोक दल और एक बार तिवारी कांग्रेस को इस सीट पर सफलता हाथ लगी। सन् 1991, 1998 और 2014 के लोकसभा चुनाव में ही भाजपा को इस सीट पर जीत हासिल हो पायी। पहाड़ी मतदाता बहुल इस सीट पर मुस्लिम, बंगाली, पूर्वांचली आैर पंजाबी मतदाता भी अच्छी खासी संख्या में हैं। सपा-बसपा गठबंधन ने भी पंजाबी, मुस्लिम, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के मतदाताओं के लिहाज से नवनीत अग्रवाल पर दांव लगाया है।
सं.जय.श्रवण
वार्ता
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