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उत्तराखंड में शराबंदी के मामले में हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

नैनीताल, 03 मई (वार्ता) उत्तराखंड में शराबबंदी को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने सरकार से पूछा है कि राज्य स्थापना के बाद पिछले 18 साल में सरकार की ओर से कब-कब और किन-किन स्थानों में शराबबंदी की गयी है। अदालत ने सरकार को इस मामले में विस्तृत हलफनामा पेश करने को कहा है।
इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति नारायण सिंह धनिक की युगलपीठ में हुई। अधिवक्ता डी.के. जोशी की ओर से राज्य में शराबबंदी और शराब के चलन को हतोत्साहित करने की मांग को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गयी है। यह याचिका पिछले साल दायर की गयी थी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की ओर से उत्तर प्रदेश आबकारी अधिनियम 1910 की धारा 37 ए के तहत मामले को चुनौती दी गयी है।
श्री जोशी ने बताया कि आबकारी अधिनियम की धारा 37 ए के तहत कुछ क्षेत्रों में शराबबंदी के लिये प्रावधान सुनिश्चित किये गये हैं। इस प्रावधान के तहत शैक्षिक, धार्मिक क्षेत्रों के अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े, पर्वतीय एवं अनुसूचित जाति-जनजाति क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
अधिवक्ता की ओर से अदालत से मांग की गयी है कि सरकार को शराब से बड़े पैमाने पर होने वाले नुकसान का आकलन करना चाहिए और उसी के अनुसार उपाय भी किये जाने चाहिए। राज्य में पिछले 18 साल में शराब बिक्री के राजस्व लक्ष्य में अभूतपूर्व तरीके से वृद्धि हुई है। यह राशि वर्ष 2001-02 में 271 करोड़ से बढ़कर 2650 करोड़ रुपये हो गयी है।
श्री जोशी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने पिछले साल राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को सुनने और मद्य निषेध के लिये प्रेरित करने वाले उपायों के प्रचार-प्रसार पर विचार करने को कहा था। उन्होंने कहा कि सरकार ने जवाब पेश करने के लिये तीन सप्ताह की समय सीमा की मांग की है।
रवीन्द्र, उप्रेती
वार्ता
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