राज्य » अन्य राज्यPosted at: Jul 8 2019 7:05PM उत्तराखंड में मेडिकल की फीस में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी, नियमों में फेरबदलदेहरादून, 08 जुलाई (वार्ता) उत्तराखंड सरकार ने चिकित्सा विज्ञान (मेडिकल) के शुल्क (फीस) में अप्रत्याशित बढ़ोतरी करने के साथ अभी तक मेडिकल पाठ्यक्रम पूर्ण करने के बाद राज्य में पांच वर्ष सेवाएं देने की बाध्यता भी समाप्त कर दी है।राज्य युवा कल्याण परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष रवींद्र जुगरान ने मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को इस सम्बंध में एक ज्ञापन भेजकर मेडिकल फीस को तत्काल कम करने की मांग की है। वर्ष 2019-20 के लिये राज्य सरकार द्वारा मेडिकल छात्रों के लिये नई फीस की घोषणा के सम्वन्ध में भेजे गये ज्ञापन में उन्होंने लिखा है कि मुख्यमंत्री की ओर से सरकारी बेेेवसाइट पर खुद के जीवन परिचय के साथ इस बात का दावा किया गया कि उनके द्वारा वर्ष 2006 में उच्च न्यायालय से आदेश पारित कराकर हल्द्वानी मेडिकल कालेज की फीस 1.25 लाख से 25 हजार करवाई गई।श्री जुगरान ने लिखा है कि श्री त्रिवेन्द्र ने अपनी ही सरकार में जून 2019 में दो सरकारी काॅलेजों हल्द्वानी और दून मेडिकल कालेज में अध्ययनरत छात्रों को दुर्गम स्थानों में पांच साल सेवा की अनिवार्यता सेवा प्रदान करने का अनुबंध भी समाप्त कर दिया। जबकि श्रीनगर मेडिकल काॅलेज में यह व्यवस्था बरकरार है।उन्होंने कहा कि श्रीनगर को छोड़कर हल्द्वानी और दून मेडिकल में अनुबंध समाप्त होने से वहां 50 हजार के स्थान पर 4.25 लाख रुपये फीस देनी होगी। उन्होंने सवाल उठाया कि इसमें एकरूपता क्यों नहीं है। एक प्रदेश में कैसे दो-दो नियम लागू किया जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि इससे अभ्यर्थियों की अवसर की समानता का सीधा हनन है। इसका मैरिट पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और पर्वतीय क्षेत्र के गरीब, निम्न और मध्यम आय वर्ग के अभ्यर्थी इतनी बड़ी राशि नहीं दे पाएंगे, जिससे उनका डाॅक्टर बनने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा।श्री जुगरान ने यह भी कहा कि सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू करने का निर्णय तो ले लिया, लेकिन मेडिकल के आर्थिक रूप पिछड़ों के लिए फीस में कोई रियायत का प्रावधान नहीं जोड़ा है। उन्होंने पूछा कि दूसरे राज्यों में मूल निवासियों को फीस में छूट है, लेकिन उत्तराखंड में नहीं। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में सरकारी काॅलेजों में 3500 से लेकर 38000 और असम में 4000 और झारखंड में 6000 फीस ली जा रही है। जबकि उत्तराखंड में अधिक फीस वसूलना नाइंसाफी है।सं. उप्रेतीवार्ता