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स्टोन क्रेशरों के मामले में न्यायालय ने सरकार से रिपोर्ट मांगी

नैनीताल, 31 जुलाई (वार्ता) उत्तराखंड में नियमों को ताक पर रखकर संवेदनशील इलाकों में खोले जा रहे स्टोन क्रेशरों के मामले में बुधवार को उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार से सोमवार तक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की पीठ जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया है। न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिये कि याचिका में उठाये गये सभी बिन्दुओं पर सोमवार तक विस्तृत रिपोर्ट पेश करे। मामले की अगली सुनवाई सोमवार को होगी।
श्री मैनाली ने यह भी कहा कि न्यायालय ने सरकार को यह भी निर्देश दिया है कि वह यह भी बताये कि उसने स्टोन क्रेशरों की अनुमति देने से पहले राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति ली है या नहीं? न्यायालय ने प्रदेश भर में लगाये जा रहे 54 स्टोन क्रेशरों के संबंध में रिपोर्ट तलब की है। न्यायालय ने सरकार से ध्वनि प्रदूषण के तय मानकों के संबंध में भी रिपोर्ट मांगी है कि स्टोन क्रेशरों को किन मानकों के तहत अनुमति प्रदान की गयी है।
इससे पहले याचिकाकर्ता रामनगर निवासी आनंद सिंह नेगी की ओर से दायर जनहित याचिका में न्यायालय को बताया गया कि सरकार ने नियमों को ताक पर रखकर एक जनवरी 2018 से मार्च 2019 के बीच प्रदेश में 54 स्टोन क्रेशरों को लगाने की अनुमति प्रदान कर दी है। ये स्टोन क्रेशर प्रदेश के बेहद संवेदनशील क्षेत्रों में पांच साल के लिये स्थापित किये जाने हैं। मौजूदा नियमों के तहत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के बाद ही स्टोन क्रेशरों को लगाये जाने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए थी। ग्रामीण क्षेत्रों में लगाये जाने वाले इन स्टोन क्रेशरों के मामले में ध्वनि प्रदूषण के तय मानकों का उल्लंघन किया गया है।
सं राम
(वार्ता)
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