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हर की पैड़ी के विवादित गंगा मंदिर को मूल स्वरूप देने की कवायद शुरू

हरिद्वार 16 अक्टूबर (वार्ता) उत्तराखंड के हरिद्वार में विश्व प्रसिद्ध हर की पैड़ी पर मानसिंह की छतरी को मूलस्वरूप में लाने के लिए मेला प्रशासन ने कवायद शुरू कर दी है। उच्च न्यायालय भी पहले ही इसके लिए आदेश जारी कर चुका है।
मेलाधिकारी दीपक रावत ने बुधवार को तकनीकी विशेषज्ञाें की टीम के साथ मानसिंह की छतरी का निरीक्षण किया। तकनीकी विशेषज्ञों की राय के बाद ही गंगा कोे मूल स्वरूप में लाने की कार्यवाही की जाएगी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रूड़की एवं सर्वे आॅफ इंडिया की टीम ने श्री रावत एवं अन्य प्रशासनिक अधिकरियों के साथ हर की पैड़ी पर उक्त मंदिर का मुआयना किया।
गौरतलब है कि 1998 के कुंभ से पूर्व उक्त मानसिंह की छतरी एवं गंगा मंदिर जिसे हर की पैड़ी की पहचान माना जाता था। जिसका पुरातत्व की दृष्टि से काफी महत्व है। उसे मरम्मत के नाम पर उसके ढांचे के ऊपर कमरा बनाकर उसके मूल स्वरूप को परिवर्तित करने का प्रयास किया गया था।
सूत्रों के अनुसार पुरोहितों के विरेाध पर हरिद्वार विकास प्राधिकरण ने उसका काम बीच में ही रुकवा दिया था बाद में मामला न्यायालय में काफी सालों तक विचाराधीन रहा। न्यायालय ने उसे मूल स्वरूप में लाने के आदेश पारित किये। लेकिन अभी भी न्यायालय के आदेशों का अनुपालन नहीं हो पाया है।
हर की पैड़ी मंदिर के बारे में कई भ्रांतियां है कुछ लेाग इसे महाराजा अकबर के महामंत्री आमेर नरेश मिर्जा राजा मान सिंह की बहन एवं अकबर की पत्नी महारानी जेाधाबाई की समाधि बताते है। कुछ लोग इसे मान सिंह द्वारा अपने परिजनों की अस्थिायां यहां विसर्जित करने पर उनकी स्मृति में बनायी गयी छतरी यानि साधना स्थल बताते है। जिसका नाम सरकारी रिकार्ड में मान सिंह की छतरी के रूप में दर्ज है।
ऐसा मानना है कि राजा मान सिंह में यहां हर की पैड़ी पर ब्रहमकुण्ड पर राजस्थान शैली में एक अष्टकोणीय साधना स्थल बना कर इसे किसी साधु को दान कर दिया था। लेकिन पंडों के विरोध के कारण यह साधु से कुछ महाराष्ट्र के ब्राहमणों के पास चली गयी।
महाराष्ट्र का बुधकर परिवार इस मंदिर की दान राशि को प्राप्त करता रहा है। यह मंदिर 1998 के कुंभ मेले के दौरान विवादों में आ गया। जब इसकी देखरेख करने वाले कमलकांत बुधकर ने बड़ी चतुराई से इसकी मरम्मत की स्वीकृति विकास प्राधिकरण से ले ली और बाद में मंदिर को तेाड़ कर उसके ऊपर कमरा बना दिया गया।
मंदिर के मूल स्वरूप में परविर्तन होने के बाद यहां हड़कंप मच गया। जिसके बाद यहां समाजिक संस्थाओं, पंडों, पुरोहितों एवं व्यापारियों ने इसका विरोध किया। जिसके बाद इसका कार्य विकास प्राधिकरण ने रुकवा दिया। अब न्यायालय के आदेश के बाद पुनः इस मंदिर को पुरोन मूल स्वरूप में लाने के लिए मेला प्रशासन ने मशक्कत शुरू कर दी है ।
श्री रावत ने बताया कि तकनीकी विशेषज्ञों की रिर्पोट आने के बाद यह तय किया जाएगा की मंदिर का ढांचा हटा कर उसके स्थान पर नया ढांचा बनाया जाये अथवा पुराने ढांचे को ही मूल स्वरूप प्रदान किया जाए।
सं. उप्रेती
वार्ता
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