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बेहिसाब बिजली खर्च के मामले में हाईकोर्ट गंभीर

नैनीताल 14 नवंबर (वार्ता) उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बिजली कर्मचारियों द्वारा बेहिसाब बिजली खर्च करने के मामले को गंभीरता से लेते हुए उत्तराखंड विद्युत निगम (यूपीसीएल), उत्तराखंड जल विद्युत निगम (यूजेवीएनएल) एवं पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन आफ उत्तराखंड लि. (पिटकुल) से विस्तृत ब्यौरा पेश करने को कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई 25 नवम्बर को होगी। न्यायालय ने यूपीसीएल को निर्देश दिया है कि वह सेवारत व सेवानिवृत्त कर्मचारियों को निशुल्क बिजली आवंटन के मामले में पूरा ब्योरा अदालत में पेश करे। कोर्ट ने यह भी कहा है कि निगम यह भी बताये कि अभी तक कितनी यूनिट निशुल्क बिजली खपत की जा चुकी है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ ने गुरुवार को देहरादून के आरटीआई क्लब की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिये। यूपीसीएल की ओर से आज अदालत में जवाब पेश किया गया लेकिन अदालत निगम के जवाब से संतुष्ट नजर नहीं आयी।
न्यायालय ने यूपीसीएल के पूछा कि अभी तक सेवारत व सेवानिवृत्त कर्मचारियों एवं अधिकारियों को कितनी यूनिट बिजली निशुल्क आवंटित की जा चुकी है।
निगम के पास अदालत के इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं था। यूपीसीएल की ओर से अदालत को बताया गया कि आगामी 18 दिसंबर को यूपीसीएल, यूजेवीएनएल और पिटकुल के प्रबंध निदेशकों की एक बैठक होने जा रही है। जिसमें वह इस मामले पर चर्चा करेंगे और रणनीति बनायेंगे। इसके बाद उच्च न्यायालय ने यूपीसीएल को निर्देश दिया कि वह 25 नवम्बर तक बताये कि अभी तक कितनी यूनिट बिजली निशुल्क खर्च की जा चुकी है।
इसके साथ ही याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि यूपीसीएल के अलावा यूजेवीएनएल एवं पिटकुल की ओर से भी अपने कर्मचारियों को मामूली दरों पर निशुल्क बिजली उपलब्ध करायी जाती है। इसके बाद न्यायालय ने दोनों निगमों से भी बिजली खपत के मामले में वर्षवार विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा है। इसके साथ ही अदालत ने यूजेवीएनएल को निर्देश दिया कि उसके द्वारा यूपीसीएल को किस दर पर बिजली मुहैया करायी जाती है। अदालत ने यूजेवीएनएल को यह भी निर्देश दिया कि सेवानिवृत्त व सेवारत कर्मचारियों द्वारा खर्च की जाने वाली बिजली का वर्षवार ब्यौरा न्यायालय में 25 नवम्बर तक पेश करे।
इससे पहले न्यायालय ने बेहद सख्त रूख अख्तियार करते हुए यूपीसीएल से आज इस पूरे मामले में विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा था। अदालत ने इसे लूट की संज्ञा देते हुए इस पूरे प्रकरण की जांच भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) से कराने की बात कही थी।
याचिकाकर्ता क्लब ने अपनी याचिका में कहा कि राज्य में विद्युत निगम के लगभग 19000 वर्तमान एवं सेवानिवृत्त कर्मचारी मौजूद हैं। विद्युत निगम की ओर से मामूली से शुल्क पर सभी को बेहिसाब बिजली मुहैया करायी जा रही है। हजारों कर्मचारियों के घरों में बिजली के मीटर तक उपलब्ध नहीं हैं और जहां मीटर उपलब्ध हैं वहां अधिकांश खराब हालत में हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि निगम के पास इसका कोई ब्योरा उपलब्ध नहीं है। याचिकाकर्ता की ओर से याचिका में यह भी खुलासा किया गया कि यूपीसीएल के प्रबंध निदेशक की ओर से एक माह में 92 हजार रुपये की बिजली खर्च की गयी है।
रवीन्द्र.संजय
वार्ता
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