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उप्र, उत्तराखंड के बीच परिवहन निगम की परिसंपत्तियों का विवाद सुलझेगा जल्द

नैनीताल, 10 जनवरी (वार्ता) उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के बीच परिवहन निगम की परिसंपत्तियों के हस्तांतरण का विवाद केन्द्र की सहमति के बाद जल्द सुलझ सकता है। केन्द्र सरकार की ओर से इस आशय की सहमति उच्च न्यायालय को दी गयी है।
उच्च न्यायालय ने भी केन्द्र सरकार को 11 फरवरी तक की समय सीमा दे दी है। अदालत की ओर से कहा गया है कि इससे पहले प्रगति रिपोर्ट अदालत में पेश करें। मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ में उत्तराखंड परिवहन निगम कर्मचारी यूनियन की ओर से दायर जनहित याचिका पर गुरुवार को सुनवाई हुई। दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों के विवाद के मामले में केन्द्र सरकार को जवाब देना था। इससे पिछली तिथि को केन्द्र सरकार की ओर से कहा गया था कि दोनों राज्यों की ओर से स्टेटस रिपोर्ट उसे नहीं सौंपी गयी है। यह भी कहा गया कि केन्द्र की ओर से दोनों को पृथक-पृथक पत्र भेजे गये थे।
सुनवाई के दौरान कल केन्द्र सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि दोनों की ओर से स्टेटस रिपोर्ट मिल गयी है। इसलिये इस विवाद के हल के लिये उसे और समय सीमा दी जाये। इसके बाद अदालत ने केन्द्र सरकार की मांग को स्वीकार करते हुए सुनवाई के लिये 11 फरवरी की तिथि तय कर दी। साथ ही केन्द्र सरकार को निर्देश दिया कि 11 फरवरी से पहले वह इस प्रकरण की प्रगति रिपोर्ट अदालत में पेश करे।
उत्तराखंड परिवहन निगम कर्मचारी यूनियन की ओर से पिछले साल एक जनहित याचिका दायर कर कहा गया कि उप्र सरकार की ओर से परिवहन निगम की परिसंपत्तियों का हस्तांतरण नहीं किया जा रहा है। परिवहन निगम की परिसंपत्तियों के हस्तांतरण के बदले में उप्र सरकार की ओर से लगभग 700 करोड़ रुपये की धनराशि उत्तराखंड परिवहन निगम को वापस देनी है। केन्द्र के तयशुदा फार्मूले के तहत यह राशि तय की गयी है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि धनराशि नहीं मिलने से उत्तराखंड परिवहन निगम की माली हालत खराब हो गयी है। बसों का बेड़ा लगातार कम होता जा रहा है। कर्मचारियों की देनदारी बढ़ती जा रही है। हालत यह है कि कर्मचारियों को वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है। उत्तराखंड सरकार एवं शासन उप्र के सामने बौने साबित हो रहे हैं। यूनियन के महासचिव अशोक चौधरी एवं अध्यक्ष कमल पपनै की ओर से दायर याचिका में उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग करते हुए यह धनराशि वापस करने की मांग की गयी है।
रवीन्द्र, उप्रेती
वार्ता
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