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उत्तराखंड में नदियों में अवैध खनन के मामले में पक्षकारों से जवाब तलब

नैनीताल, 11 जून (वार्ता) उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य की नदियों में हो रहे अनियंत्रित खनन के मामले को गंभीरता से लेते हुए गुरुवार को केन्द्र सरकार की ओर से खनन के नियंत्रण सर्वेक्षण एवं प्रबंधन के लिये बनाये गये नियमों के उल्लंघन के मामले में खनन विभाग के अपर मुख्य सचिव, खनिकर्म के निदेशक और वन विकास निगम के प्रबंध निदेशक समेत सभी पक्षकारों को तीन सप्ताह में विस्तृत जवाब देने के आदेश दिए।
मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की पीठ ने हल्द्वानी निवासी दिनेश कुमार चंदोला की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिये। पीठ ने पर्यावरण मंत्रालय, भारतीय सर्वेक्षण विभाग के उपनिदेशक व देहरादून स्थित केन्द्रीय उपमहानिदेशक वन से भी पूछा है कि क्या नदियों में हो रहे अनियंत्रित मशीनी खनन की वजह से पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के अध्ययन को लेकर कोई सर्वेक्षण किया जा सकता है या नहीं। अदालत ने तीन सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है।
अदालत के रूख को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से पीठ को बताया गया कि खनन पट्टों के लिये मशीनी खनन की अनुमति को वह 15 जून से आगे जारी नहीं करेगी। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सरकार ने 13 मई 2020 को एक शासनादेश जारी कर खनन पट्टों में भी मशीनों से खनन की अनुमति दे दी है। जो कि गलत है। इसके सरकार ने नियमावली में संशोधन नहीं किया है। आज सरकार की ओर से अदालत को यह भी बताया गया कि खनन पट्टों में मशीनी खनन की अनुमति देने के लिये उसने खनन नियमावली में संशोधन 8 जून को किया है।
याचिकाकर्ता की ओर से जनहित याचिका दायर कर कहा गया था कि पौड़ी जनपद के कोटद्वार स्थित खोह व सुखरौ, नैनीताल के बेतालघाट व ऊधमसिंह नगर और विकासनगर तहसीलों के अलावा अन्य जनपदों में में नदियों में बड़े पैमाने पर अत्याधुनिक मशीनों से खनन को अंजाम दिया जा रहा है। नदियोें का अवैज्ञानिक दोहन किया जा रहा है। जिससे नदी तल बुरी तरह से क्षत विक्षत हो गये हैं। इससे यहां के पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि खनन माफियाओं ने तहसील विकास नगर में यमुना नदी के तटों को बुरी तरह से तहस नहर कर दिया है। यहां तक कि यमुना नदी के प्राकृतिक प्रवाह को ही मोड़ दिया है।
रवीन्द्र , टंडन
वार्ता
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