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अस्थायी महिला कार्मिकों की सीसीएल मामले में सुनवाई पूरी, निर्णय सुरक्षित

नैनीताल, 18 जुलाई (वार्ता) उत्तराखंड में नियमित कर्मचारियों की तरह ही अस्थायी एवं संविदा पर कार्यरत महिला कर्मचारियों को चाइल्ड केयर लीव (सीसीएल) का लाभ मिलेगा या नहीं यह उच्च न्यायालय की पूर्णपीठ ने इस मामले में अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है।
मामले को देहरादून निवासी तनुजा टोलिया की ओर से चुनौती दी गयी है। याचिकाकर्ता पेशे से चिकित्सक हैं और उन्होंने 2019 में याचिका दायर कर कहा कि सरकार ने उन्हें अस्थायी सेवा के दौरान सीसीएल का लाभ देने से इनकार कर दिया है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सरकार का यह कदम भेदभावपूर्ण एवं मौलिक अधिकारों का हनन है।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय की संयुक्तपीठ की ओर से 15 दिसंबर, 2016 को डाॅ. दीपा शर्मा बनाम उत्तराखंड सरकार मामले में निर्णय दिया गया है कि प्रदेश में स्थायी, अस्थायी एवं संविदा पर तैनात सभी महिलाओं को सीसीएल का लाभ मिलना चाहिए। इसी को आधार बनाकर याचिकाकर्ता की ओर से सीसीएल के लिये आवेदन किया गया था। जिसे सरकार ने खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से सरकार के इस कदम को उच्च न्यायालय में चुनौती दी। मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की युगलपीठ में मामले की सुनवाई हुई लेकिन युगलपीठ के पूर्व के फैसले को देखते हुए इस मामले को पूर्ण पीठ को सौंपा दिया गया। इसी क्रम में विगत 14 जुलाई, 2020 को मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन की अगुवाई में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति आलोक वर्मा वाली पूर्ण पीठ का गठन किया गया। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता बीडी पांडे ने पैरवी की।
श्री पांडे की ओर से अदालत को बताया गया कि विभिन्न उच्च न्यायालय इस प्रकरण में अस्थायी महिला कर्मचारियों के पक्ष में अपना निर्णय दे चुके हैं। दीपा शर्मा बनाम राज्य सरकार एवं डाॅ. शांति मेहरा बनाम प्रदेश सरकार मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय की युगलपीठ अस्थायी एवं संविदा कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय दे चुकी है। अदालत ने कहा है कि नियमित सेवा की तरह ही अस्थायी एवं संविदा पर काम करने वाली महिला कर्मचारियों को 730 दिनों का सीसीएल का लाभ मिलना चाहिए।
याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि 2017 में रचना शुक्ला बनाम उत्तर प्रदेश सरकार में मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट, डोली गोगाई बनाम असम सरकार मामले में भी गुवाहाटी हाईकोर्ट इसी प्रकार का महत्वपूर्ण आदेश पारित कर चुकी हैं। यही नहीं पंजाब सरकार बनाम जगजीत सिंह मामले में भी सुप्रीम कोर्ट की ओर से भी समान कार्य व समान वेतन की अवधारणा को प्रतिपादित किया गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत के समक्ष पेश तथ्य में कहा गया है कि रोजगार की अवधि के अनुपात में अस्थायी सेवा में कार्यरत महिलाओं को सीसीएल का लाभ मिलना चाहिए। गुवाहाटी उच्च न्यायालय की ओर से भी इसी अनुपात के आधार पर सीसीएल का लाभ देने की वकालत की गयी है। सरकारी कर्मचारियों को प्रतिवर्ष लगभग 30 से 45 दिनों का अर्जित अवकाश स्वीकार्य है। इसी आधार पर अस्थायी सेवा में तैनात महिला कार्मिकों को वर्ष दर वर्ष सेवा के आधार पर सीसीएल का लाभ मिलना चाहिए।
याचिकाकर्ता की ओर से इस बात की भी पैरवी की गयी कि सरकार का यह कदम अस्थायी एवं संविदा सेवा में तैनात कर्मचारी के बच्चे के मौलिक अधिकारों का हनन है और भेदभावपूर्ण है। श्री पांडे ने बताया कि सुनवाई पूरी होने के बाद पूर्ण पीठ ने इस मामले में 14 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया है।
सं. उप्रेती
वार्ता
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