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फर्जी शिक्षकों के मामले में सरकार ने हाईकोर्ट से मांगा और समय

नैनीताल, 02 नवम्बर (वार्ता) फर्जी शिक्षक प्रकरण उत्तराखंड सरकार की गले की फांस बन गयी है। उच्च न्यायालय के सख्त रूख के बावजूद सरकार इस मामले में कुछ नहीं कर पा रही है। सरकार ने एक बार फिर अदालत से अतिरिक्त समय देने की गुहार लगायी है।
फर्जी शिक्षक प्रकरण में अदालत का रूख शुरू से सख्त रहा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमथ की अगुवाई वाली पीठ ने सरकार को विगत 30 सितम्बर को प्रदेश में तैनात सभी शिक्षकों के दस्तावेजों की जांच निश्चित समयावधि में कराने के निर्देश दिये थे।
सरकार की ओर से इस काम के लिये अदालत से डेढ़ साल के समयावधि की मांग की गयी। सरकार की ओर से कहा गया कि प्राइमरी शिक्षा के तहत प्रदेश में कुल 33065 शिक्षक तैनात हैं। इनमें प्रधानाचार्य, सहायक अध्यापकों के अलावा 766 शिक्षक मित्र भी शामिल हैं। इन सभी शिक्षकों की हाईस्कूल, इंटरमीडिएट और स्नातक के साथ साथ बीएड, बीटीसी, डीएलएड, सीपीएड और उर्दू शिक्षकों के दस्तावेजों की जांच करानी होगी। इस प्रकार कुल मिलाकर 132260 दस्तावेजों की जांच करानी होगी। विभाग को इसके लिये धन की आवश्यकता होगी। सरकार की ओर से आखिरकार इसके लिये डेढ़ साल का वक्त मांगा गया।
गौरतलब है कि अदालत ने सरकार की मांग को अस्वीकार कर दिया और उसे तीन सप्ताह में सभी शिक्षकों के दस्तावेजों की जांच पूरी करने के निर्देश दे दिये थे। साथ ही सुनवाई के लिये आज की तिथि मुकर्रर की थी। अदालत की ओर से कहा गया था कि सरकार दो नवम्बर (आज तक) तक अनुपालन रिपोर्ट अदालत में पेश करे लेकिन सरकार आखिरकार आज भी अदालत में खाली हाथ आयी। सरकार की ओर से प्रगति रिपोर्ट नहीं सौंपी गयी।
सरकार की ओर से आज अदालत से फिर से अतिरिक्त समय की मांग की गयी। अब सरकार कल मंगलवार को इस मामले में प्रार्थना पत्र देकर देगी और सरकार के प्रार्थना पत्र पर आगामी पांच नवम्बर को सुनवाई होगी।
उल्लेखनीय है कि सरकार अदालत को बता चुकी है कि अभी तक प्रदेश में 87 फर्जी शिक्षकों के मामले सामने आ चुके हैं। ये सभी फर्जी दस्तावेजों के बल पर शिक्षक की नौकरी ले चुके हैं। इनमें सरकार की ओर से 61 के खिलाफ कार्यवाही की जा चुकी है जबकि शेष के खिलाफ कार्यवाही जारी है। हालांकि याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि प्रदेश में हजारों की संख्या में ऐसे शिक्षक मौजूद हैं जिन्होंने फर्जी दस्तावेजों के बल पर नौकरी पायी है।
सरकार की ओर से अदालत को यह भी बताया गया कि तीन शिक्षकों के दस्तावेज एसआईटी जांच में फर्जी पाये गये थे लेकिन विभागीय जांच के बाद उन्हें क्लीन चिट दे दी गयी। अदालत ने इस प्रकरण को बेहद गंभीरता से लिया है और सरकार से पूछा है कि क्लीन चिट देने वाले अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्यवाही की गयी।
मामले को हल्द्वानी के दमुवाढूंगा स्थित स्टूडेंट गार्जियन वेलफेयर कमेटी की ओर से जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सरकार इस पूरे प्रकरण में लापरवाही बरत रही है।
अब देखने की यह बात है कि अदालत का इस मामले में पांच नवम्बर को क्या रुख रहता है।
रवीन्द्र, उप्रेती
वार्ता
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