Wednesday, Apr 24 2024 | Time 23:21 Hrs(IST)
image
राज्य » अन्य राज्य


उत्तराखंड में चहुंओर बूढ़ी दिवाली और इगास बग्वाल का उत्साह

देहरादून, 24 नवम्बर, (वार्ता) मर्यादा पुरुषोत्तम राम के 14 वर्ष बाद वनवास पूर्ण कर, अयोध्या पहुंचने की खुशी में दीप प्रज्वलित कर दीपावली बनाई जाती है, लेकिन हिमालय की श्रंखलाओं (कन्दराओं) में प्रभु श्रीराम के आगमन का समाचार 11 दिन बाद यानि देवोत्थान एकादशी (हरीबोधनी एकादशी) को पहुंचा। तब से अभी तक इन कन्दराओं में, विशेषकर, उत्तराखंड में बढ़ी दीपावली का उत्सव मनाया जा रहा है। इस बार यहां यह 25 नवम्बर (बुधवार) को मनाया जाएगा।
भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) से सेवानिवृत्त और साहित्य मनीषी मंजुल कुमार जोशी के अनुसार, इस हिमालयी राज्य के कुमायूँ मण्डल में जहां इस त्योहार को बूढ़ी दिवाली कहा जाता है, वहीं गढ़वाल मण्डल में इगास बग्वाल। दीपावली की विभिन्न किंवदन्ती में शामिल मर्यादा पुरूषोत्तम राम के अयोध्या आगमन के साथ, भगवान विष्णु और लक्ष्मी से जुड़ी किंवदन्ती भी दृष्टव्य होती है। मान्यता है कि अमावस्या के दिन लक्ष्मी जागृत होती हैं, इसलिए बग्वाल को लक्ष्मी पूजन किया जाता है। जबकि, हरिबोधनी एकादशी यानी इगास पर्व पर श्रीहरि शयनावस्था से जागृत होते हैं। इसलिये इस दिन विष्णु की पूजा का विधान है।
जिस तरह देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुरू होकर गुरु पर्व (कार्तिक पूर्णिमा) तक दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। यह अलग बात है कि इनके नाम अलग-अलग त्योहारों के नाम से जाने जाते हैं। इसी तरह, शुरू हो जाता है, जो कि कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी हरिबोधनी एकादशी तक चलता है। इसे ही इगास-बग्वाल कहा जाता है। इन दोनों दिनों में सुबह से लेकर दोपहर तक गोवंश की पूजा की जाती है।
राज्य के सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग के अपर निदेशक डाक्टर अनिल चन्दोला बताते हैं कि इगास बग्वाल में मवेशियों के लिए भात, झंगोरा, बाड़ी (मंडुवे के आटे का हलुवा) और जौं का पींडू (आहार) तैयार किया जाता है। साथ ही, भात, झंगोरा, बाड़ी और जौ के बड़े लड्डू तैयार कर उन्हें परात में कई तरह के फूलों से सजाया जाता है। सबसे पहले मवेशियों के पांव धोए जाते हैं और फिर दीप-धूप जलाकर उनकी पूजा की जाती है। माथे पर हल्दी का टीका और सींगों पर सरसों का तेल लगाकर उन्हें परात में सजा अन्न ग्रास दिया जाता है। इसे गोग्रास कहते हैं।
श्री चन्दोला बताते हैं कि बग्वाल और इगास को घरों में पूड़ी, स्वाली, पकोड़ी, भूड़ा आदि पकवान बनाकर उन सभी परिवारों में बांटे जाते हैं, जिनकी बग्वाल नहीं होती। इस पर्व पर भी रात में पूजन के बाद गांव के सभी लोग भैलो खेलते हैं।
भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से सेवानिवृत्त अजय कुमार जोशी ने यूनीवार्ता को बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीराम के वनवास से अयोध्या लौटने पर लोगों ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। वह बताते हैं कि गढ़वाल और कुमायूँ क्षेत्र में राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली। इसीलिए ग्रामीणों ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया।
मुख्यमंत्री के मीडिया समन्वयक दर्शन सिंह रावत के अनुसार, मान्यता यह भी है कि गढ़वाल राज्य के सेनापति वीर भड़ माधो सिंह भंडारी जब दीपावली पर्व पर लड़ाई से वापस नहीं लौटे तो जनता इससे काफी दुखी हुई और उसने उत्सव नहीं मनाया। इसके ठीक ग्यारह दिन बाद एकादशी को वह लड़ाई से लौटे। तब उनके लौटने की खुशी में दीपावली मनाई गई। जिसे इगास पर्व नाम दिया गया।
सं. उप्रेती
वार्ता
image