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सांस रोकने से कोरोना का खतरा बढ़ सकता है: आईआईटी

चेन्नई, 11 जनवरी (वार्ता) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान,मद्रास (आईआईटी-एम) के शोधकर्ताओं ने पाया है कि सांस रोकने से कोरोना वायरस (कोविड-19) का संक्रमण होने का खतरा बढ़ सकता है।
शोधकर्ताओं ने एक प्रयोगशाला में साँस लेने की आवृत्ति को बेहतर ढंग से समझने के लिए प्रदर्शन किया कि कैसे वायरस से युक्त बूंद (ड्रापलेट)के प्रवाह की दर फेफड़ों में वायरस के जमाव को निर्धारित करती है। इस दौरान पाया गया कि वायरस युक्त बूंदों को गहराई तक फेफड़ों में ले जाने की प्रक्रिया सांस की आवृत्ति कम होने के साथ बढ़ जाती है।
शोध टीम ने एक प्रयोगशाला में सांस लेने की आवृत्ति का मॉडल तैयार किया और पाया कि कम सांस लेने की आवृत्ति वायरस के रूकने के समय को बढ़ाती है और इसलिए यह इसके भीतर पहुंचने की आशंका और परिणाम स्वरूप संक्रमण को बढ़ाती है।
आईआईटी-एम की सोमवार को जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि इसके अलावा, फेफड़े की बहु-स्तरीय संरचना का कोविड-19 के लिए एक व्यक्ति की संवेदनशीलता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
इस अनुसंधान का नेतृत्व प्रोफेसर महेश पंचग्नुला, अप्लायड मैकेनिक्स विभाग, आईआईटी मद्रास द्वारा किया गया था। इसमें उनके शोधकर्ता सर्वश्री अर्नव कुमार मल्लिक और सौमल्या मुखर्जी शामिल थे।
इस अध्ययन के निष्कर्षों को अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू जर्नल फिजिक्स ऑफ फ्ल्यूडस में प्रकाशित किया गया है। प्रों पंचग्नुला ने कहा, “ कोविड-19 ने गहरी पल्मोनोलॉजिकल प्रणालीगत बीमारियों की हमारी समझ को बढ़ाया है। हमारा अध्ययन इस रहस्य को उजागर करता है कि फेफड़ों में कैसे ये कण गहराई तक पहुंंचते हैं और इसके बाद जमा होते हैं।”
संजय.श्रवण
वार्ता
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