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ग्लेशियर टूटना : ड्रोन और हेलीकॉप्टर से अत्याधुनिक ब्लॉक टनल जियोग्राफिकल स्कैनिंग

चमोली/देहरादून, 10 फरवरी (वार्ता) उत्तराखंड के चमोली जनपद में रविवार को ग्लेशियर टूटने से हुई तबाही में लापता व्यक्तियों की खोज के लिये राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ) सहित देश की विभिन्न एजेंसियां ड्रोन और हेलीकाप्टरों द्वारा अत्याधुनिक तकनीक ब्लॉक टनल जियोग्राफिकल स्कैनिंग की जा रही है।
एसडीआरएफ की डीआईजी रिद्विम अग्रवाल ने बताया कि इस तकनीक में ड्रोन और हॉलिकॉप्टर के जरिए ब्लॉक टनल का जियो सर्जिकल स्कैनिंग कराई जा रही है। जिसमें रिमोट सेंसिंग के जरिए टनल की ज्योग्राफिकल मैपिंग कर, टनल के अंदर मलवे की स्थिति के अलावा और भी कई तरह की जानकारियां स्पष्ट हो पाएंगे। उन्होंने बताया कि इसके अलावा थर्मल स्कैनिंग या फिर लेजर स्कैनिंग के जरिए तपोवन में ब्लॉक टनल के अंदर फंसे कर्मचारियों के होने की कुछ जानकारियां भी एसडीआरएफ को मिल पाएगी।
उन्होंने बताया कि इसमें कई तकनीकों के जरिए चमोली तपोवन में ब्लॉक टनल के अंदर पहुंचने का काम किया जा रहा है तो वही डाटा कलेक्शन के लिए ड्रोन और हॉलिकॉप्टर के माध्यम से कई एजेंसियों को अलग-अलग तकनीकों के माध्यम से अंदर की जानकारियां हासिल करने की जिम्मेदारी दी गई है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में वैज्ञानिक प्रतिचित्रण से प्राप्त डिजिटल संदेशों को पढ़ने ओर समझने की कोशिश कर रहे हैं।
उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के घटना स्थल पर मौजूद एक वरिष्ठ इंजीनियर ने बताया कि जब भी किस जगह पर टनल बनाई जाती है तो रिमोट सेंसिंग के जरिए वहां की ज्योग्राफिकल प्रतिचित्रण की जाती है। जिससे जमीन के अंदर की भौगोलिक संरचना से संबंधित डाटा उपलब्ध होता है। साथ ही, जमीन के अंदर की वस्तुस्थिति को अधिक सटीकता से समझने के लिए ड्रोन से जिओ मैपिंग के जरिए अधिक जानकारियां मिलती है।
उन्होंने बताया कि इसके अलावा, जमीन के अंदर मौजूद किसी जीवित की जानकारी के लिए थर्मल स्कैनिंग की जाती है। लेकिन थर्मल स्कैनिंग का दायरा बेहद कम होता है। इसके लिए लेजर के जरिए स्कैनिंग की जाती है जिससे जमीन के नीचे की थर्मल इमेज हमे मिल पाती है।
उल्लेखनीय है कि चमोली जिले के रैणी और तपोवन क्षेत्र में आई भीषण आपदा में राहत एवम बचाव कार्य युद्ध स्तर में चल रहा है। एसडीआरएफ़ सहित देश की अनेक एजेंसियां राहत कार्य मे लगी हुई है। सात फरवरी को समय लगभग 10.30 बजे ग्लेशियर टूटने ओर ऋषिगंगा प्रोजेक्ट के क्षतिग्रस्त होने से आये जल सैलाब ने श्रीनगर डेम क्षेत्र तक अपना प्रभाव दिखाया है। अभी तक मात्र 32 शव ही बरामद हुये हैं, जबकि लगभग 174 लोग अभी भी लापता हैं।
सं. उप्रेती
वार्ता
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