Saturday, Apr 20 2024 | Time 14:01 Hrs(IST)
image
राज्य » अन्य राज्य


चमोली आपदा को लेकर वैज्ञानिकों ने किया विश्लेषण

हरिद्वार 12 फरवरी (वार्ता) उत्तराखंड में चमोली में ऋषि गंगा एवं धौलीगंगा पर जल विद्युत परियोजनाओं में आए एवलांच के कारण आई बाढ़ तथा व्यापक जान माल की हानि पर वैज्ञानिकों ने कारण और बचाव को लेकर शोध शुरू कर दी है।
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ मनोहर अरोड़ा ने बताया कि चमोली में ऋषि बांध परियोजना में हुई आपदा ग्लेशियर के फटने के कारण नहीं हुई बल्कि कई विषम परिस्थितियों के समावेश के कारण यह दैवीय आपदा आई। उन्होंने कहा कि खराब मौसम, लगातार बर्फबारी तथा बारिश के कारण ऊंचाई वाले इलाके पर झील के निर्माण या पानी के जमाव के बाद भारी दबाव के कारण मलवा पहाड़ों से बर्फ की चट्टानों सहित खिसकने के कारण यह हादसा हुआ है जिसके कारण वहां पर कुछ देर के लिए पानी का बहाव रुक गया होगा और ऊपर से एवलांच और गाद युक्त बोल्डर पत्थर गिरने के बाद यह पानी वेग से नीचे आया और रास्ते में बांध अदि जो भी आया उसे भी वह बहा कर ले गया।
उन्होंने इस संबंध में व्यापक शोध की आवश्यकता पर भी बल दिया। उनका कहना है जो लोग वहां पर बन रहे बांध अथवा पेड़ों के कटान को इसका कारण मान रहे हैं वह बिल्कुल निराधार है जबकि यह घटना बहुत ही दुर्लभ घटना है। साधारणतः सर्दियों के इस मौसम में पहाड़ों में बर्फ जमी रहती है और ग्लेशियर के पिघलने की दर भी काफी कम होती है जिसके कारण नदियों में जल भी काफी कम रहता है अतः चारों तरफ से दबाव पड़ने के कारण यह दुर्घटना हुई है इस पर वैज्ञानिक दृष्टि से पूर्णत: निगाह रखने की आवश्यकता है ताकि ऐसी देवी आपदाओं से कम से कम जान माल की हानि हो।
वैज्ञानिकों ने हिमालय क्षेत्र के ऊपरी इलाकों तथा ग्लेशियर रो की रिमोट सेंसिंग व टोपोग्राफी लगातार करवाने पर बल दिया है सेटेलाइट के द्वारा हिमालय क्षेत्र पर यूं तो विभिन्न संस्थानों द्वारा लगातार नजर रखी जाती है जिससे वहां पर आ रहे बड़े बदलावों के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है।
भारतीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की के रिमोट सेंसिंग विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ संजय जैन ने बताया की पिछले कुछ सालों के अध्ययन में यह तथ्य प्रकाश में आए हैं कि हिमालय क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियर भी लगातार सिकुड़ रहे हैं और स्वाभाविक तौर पर पिघल भी रहे हैं उन्होंने बताया कि हिमालय के उच्च क्षेत्रों में झीलें बनना आम बात है परंतु रिमोट सेंसिंग के जरिए वहां पर हो रहे बदलाव का पता लगाकर दैवीय आपदाओं से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है ।
श्री जैन ने बताया कि पिछले 20 सालों में भारत में रिमोट सेंसिंग के मामले में बेहतर काम किया है और नए सैटेलाइटो के माध्यम से हम अब अधिक सटीक जानकारी प्राप्त करके हिमालय क्षेत्र में होने वाली हलचल ग्लेशियरों के आकार तथा झिलो का सैटेलाइट से चित्रण करके सही वस्तुस्थिति का पता लगा सकते हैं जिससे संवेदनशील इलाकों में भावी खतरों को पता लगा कर पहाड़ी क्षेत्रों और नदी तटीय क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के विकास एवं निर्माण को नियंत्रित करके जान माल की हानि को बचाया जा सकता है।
सं.संजय
वार्ता
More News
त्रिपुरा में 81 प्रतिशत मतदान, विपक्ष ने जताई गड़बड़ी की आशंका

त्रिपुरा में 81 प्रतिशत मतदान, विपक्ष ने जताई गड़बड़ी की आशंका

19 Apr 2024 | 11:41 PM

अगरतला, 19 अप्रैल (वार्ता) त्रिपुरा में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में शुक्रवार को 1,685 मतदान केंद्रों पर अनुमानित 81 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया।

see more..
सिक्किम में शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ चुनाव, शाम 7 बजे तक 68 प्रतिशत से अधिक मतदान

सिक्किम में शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ चुनाव, शाम 7 बजे तक 68 प्रतिशत से अधिक मतदान

19 Apr 2024 | 11:38 PM

गंगटोक, 19 अप्रैल(वार्ता) सिक्किम की 32 विधानसभा सीटों और एक मात्र लोकसभा सीट के लिए शुक्रवार को हुये मतदान में 68.06 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।

see more..
image