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महादेवी प्रतिरोध और परिवर्तन की कवयित्री: प्रो. कुमार

नैनीताल, 26 मार्च (वार्ता) कवयित्री महादेवी वर्मा को समग्रता में देखने के बजाय उनको कविता और गद्य में अलग करके देखा गया। उनके गद्य और कविता में एक-दूसरे से गुजरते हुए महादेवी की खोज समग्रता में की जाए तो हम पायेंगे कि उनकी भावना का तर्क ‘मेरे लिए कोई दूसरा नहीं’ यह सिद्ध करता है कि वैयक्तिक अनुभूति के सामाजिक आयाम कितने विस्तृत हो सकते हैं।
उक्त विचार हिंदी में नारी चेतना की प्रतीक सुप्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा के 114वें जन्मदिन पर कुमाऊँ विश्वविद्यालय की रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ द्वारा फेसबुक लाइव के जरिए 'महादेवी वर्मा की रचनाओं में वेदना और विद्रोह' विषय पर आनलाइन आयोजित आठवें महादेवी वर्मा स्मृति व्याख्यान में वरिष्ठ कवि, कथाकार एवं आलोचक प्रो. राजेन्द्र कुमार ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि महादेवी वर्मा प्रतिरोध और परिवर्तन की कवयित्री भी हैं। मिथ्या, क्षणिकता, नश्वर जैसे शब्द निश्चित रूप से महादेवी जी के साहित्य में भी हैं और उनके साहित्य में इन शब्दों का नया अर्थ खुलता है। यह शब्द हमारी दुनिया को कोसने का आधार नहीं बनते। वह कहती हैं कि मैं अपने लोक के प्रति कृतज्ञ हूँ, जिसमें मैं जी रही हूँ और उस परालौकिक लोक की धारणा को मानो एक चुनौती देती हैं।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राजेन्द्र कुमार ने कहा कि महादेवी गद्य में चेतन स्तर पर रहकर जो कर लेती हैं, कविता में वही उनके अवचेतन स्तर पर रहता है। यह अवचेतन एक प्रकार से भारतीय स्त्री का अवचेतन है। एक ऐसा अवचेतन जहाँ सचमुच भारतीय स्त्री अपने होने का ठिकाना पाती रही है वरना तो उसका यथार्थ यही था जो महादेवी कहती हैं, 'विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना।' महादेवी के साहित्य में करूणा की अथाह गहराई में उतरने का जो आवेग है, वह हमें डुबोने के लिए नहीं है बल्कि एक व्यापक अर्थ में उबारने के लिए है क्योंकि हम उन आशा-आकांक्षाओं का पता इस करूणा से पाते हैं जो पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री के चेतन स्तर पर आ पाने में बाधा पाती है और तब उनका आश्रयस्थल अवचेतन ही हो जाता है। प्रयागराज में महादेवी जी के सम्पर्क में रहे प्रो. राजेन्द्र कुमार ने व्याख्यान से पूर्व उनसे जुड़े संस्मरण भी साझा किए।
वीडियो संदेश के माध्यम से कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एन.के.जोशी ने कोरोनाकाल में महादेवी वर्मा सृजन पीठ द्वारा आॅनलाइन माध्यम से संचालित साहित्यिक गतिविधियों की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे कठिन समय में जब सभी प्रकार की गतिविधियां थम-सी गई थी और सामूहिक भागीदारी के आयोजन कर पाना संभव नहीं था, पीठ की रचनात्मक सक्रियता नि:संदेह सराहनीय है।
उन्होंने कहा कि महादेवी सृजन पीठ भारत के किसी विश्वविद्यालय में स्थापित पहला ऐसा पहला केंद्र है, जिसमें सृजन एवं विचार केंद्रित मुद्दों को लेकर व्यापक विमर्श होता है। पीठ का प्रयास है कि उत्तराखंड सहित देशभर की रचनाशील सांस्कृतिक प्रतिभाओं के मंच के साथ ही देश-विदेश के साहित्य-प्रेमी एवं सृजनशील विद्वान यहाँ आकर अध्ययन एवं लेखन कार्य कर सकें।
अपने सम्बोधन में महादेवी सृजन पीठ के निदेशक प्रो. शिरीष कुमार मौर्य ने कहा कि प्रो. राजेन्द्र कुमार जी ने जितना महत्वपूर्ण काम हिंदी आलोचना के क्षेत्र में किया है, उतना ही महत्वपूर्ण काम उन्होंने हिंदी के अकादमिक संसार और अध्यापन के क्षेत्र में भी किया है।
कार्यक्रम का संचालन महादेवी सृजन पीठ के शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत ने किया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार गीता गैरोला, किरण अग्रवाल, विजया सती, डाॅ. सिद्धेश्वर सिंह, अरूण देव, दिनेश कर्नाटक, सुबोध शुक्ल, डाॅ. संतोष मिश्रा व अन्य साहित्य-प्रेमी उपस्थित रहे।
रवीन्द्र, उप्रेती
वार्ता
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