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कविता में दर्ज है कोरोना की विभीषिका: संतोष

नैनीताल, 29 जून (वार्ता) दुनियाभर में फैली महामारी हमेशा से साहित्य की विषय-वस्तु रही है और इतिहास उतनी बारीकी से बीमारियों के उपजने-फैलने का विश्लेषण नहीं कर पाता जितना साहित्य करता है।
विभिन्न वेब पोर्टल, फेसबुक आदि सोशल मीडिया में कोरोना काल के संत्रास एवं साहस दोनों तरह की कविताओं को देखा जा सकता है। यह कविताएँ कोरोनाकाल की छटपटाहट को बखूबी बयां करती हैं। उक्त विचार युवा कवि एवं लेखक संतोष तिवारी ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय की रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ द्वारा 'कोरोना काल में हिंदी कविता' विषय पर फेसबुक लाइव के जरिए आयोजित ऑनलाइन चर्चा में व्यक्त किए।
उन्होंने कोरोना काल में अशोक वाजपेयी, रामदरश मिश्र, लीलाधर जगूड़ी, ज्ञानेन्द्रपति, ओम निश्चल, लीलाधर मंडलोई, एस.आर. हरनोट, बोधिसत्व, संजय कुंदन, मदन कश्यप, देवी प्रसाद मिश्र, श्रीप्रकाश शुक्ल, सुभाष राय, शैलेय, हरि मृदुल, व्योमेश शुक्ल आदि द्वारा लिखी कविताओं का जिक्र करते हुए कहा कि सदी की इस विभीषिका में साहित्य में जो कुछ दर्ज हुआ, वह मुश्किल समय में मनुष्य की जिजीविषा की अमिट गाथा है। कोरोना काल में अवसाद और तनाव के बीच जन्मी कविता ने मनुष्य को आत्मबल प्रदान किया है।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में कवि-लेखक तिवारी ने अपनी कविताओं दिन में तीन बार काढ़ा पी रही प्रेमिकाएँ, घास काटती औरतें, हमें नहीं पता, तुम्हें मुबारक, ये किसानों की आत्महत्या का मौसम है, कोसी माँ है, फिलहाल सो रहा था ईश्वर, केदारनाथ, पिता घड़ी थे, खास महामंडलेश्वर, माँ की पीठ, मोहल्ला, सारे फूल, मुश्किल दिनों में, एक दिया इनके नाम का, प्रेम में डूबना तथा बच्चों के खेल का पाठ किया।
सं. संतोष
वार्ता
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