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अश्लील वीडियो कांड:फेसबुक,केन्द्र से जवाब तलब

नैनीताल 08 सितंबर (वार्ता) फेसबुक जैसे सशक्त सोशल मीडिया माध्यम का उपयोग कर अश्लील वीडियो बनाकर धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराध करने और इस पर रोक लगाने के लिये तथाकथित रूप से कोई कारगर तंत्र मौजूद नहीं होने के मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने फेसबुक, केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है।
मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ ने इस मामले को गंभीर मानते हुए रूड़की के अधिवक्ता आलोक कुमार की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई के बाद बुधवार को फेसबुक समेत अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी किया है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इन दिनों सोशल मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग कर समाज में जबर्दस्त ढंग से अश्लीलता परोसी जा रही है व आनलाइन धोखाधड़ी जैसे अपराध बढ़ रहे हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि फेसबुक पर साइबर अपराधियों द्वारा पहले लड़की की फेक प्रोफाइल के माध्यम से लोगों से दोस्ती गांठी जाती है और उसके बाद ब्लेकमेलिंग का खेल शुरू किया जाता है। याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि वह इस मामले में खुद पीड़ित है और उसके पास पहले फेसबुक के माध्यम से दोस्ती का अनुरोध आया लेकिन जब उसने उसे ठुकरा दिया तो उसके पास धोखे से वीडियो काल भेजी गयी और उसकी फोटो का दुरूपयोग अश्लील वीडियो रिकार्डिंग में की गयी।
इसके बाद साइबर अपराधी की ओर से उसके साथ ब्लेकमेलिंग की गयी लेकिन जब उसने पैसे देने से इनकार कर दिया तो आरोपी ने वह अश्लील वीडियो रिकार्डिंग उसके दोस्तों व परिजनों को भेज दी। उसके भाई के पास भी वह रिकार्डिंग भेजी गयी। याचिकाकर्ता ने बताया कि इस प्रकरण से समाज में उसकी मानहानि हुई है। याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि सूचना अधिकार अधिनियम के माध्यम से उसे जानकारी मिली कि दो महीने पहले उत्तराखंड में ऐसे 45 मामले सामने आ चुके हैं। जिनमें विभिन्न थानों में अभियोग पंजीकृत किये गये हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि इस मामले की शिकायत हरिद्वार पुलिस से की लेकिन उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि केन्द्र सरकार ने इसी साल फरवरी में कानून बनाकर सोशल मीडिया जैसे माध्यमों को लोगों के अधिकारों की रक्षा करने और ऐसे मामलों के निस्तारण के लिये कारगर तंत्र बनाने के निर्देश दिये थे।
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि इस प्रकार के मामलों पर रोक लगाने के लिये कोई हेल्पलाइन नंबर भी जारी नहीं किया गया जिससे पीड़ित उसमें अपनी शिकायत दर्ज करा सके और ऐसे अपराधों पर तत्काल रोक लग सके। याचिकाकर्ता ने इसे संविधान की धारा 21 का उल्लंघन बताया और ऐसे मामलों पर रोक लगाने के लिये एक ठोस तंत्र विकसित करने की मांग की।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि पीठ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए केन्द्र व राज्य के सूचना प्रोद्योगिकी मंत्रालय, प्रदेश के पुलिस महानिदेशक, हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक व फेसबुक को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
रवीन्द्र.संजय
वार्ता
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