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किसान आंदोलन, मुख्यमंत्री पद की जिजीविषा यशपाल आर्य के भाजपा छोड़ने का कारण

नैनीताल, 11 अक्टूबर (वार्ता) कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य और उनके सुपुत्र विधायक संजीव आर्य की मंगलवार को कांग्रेस में घर वापसी हो गयी। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) छोड़कर दिल्ली में राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस का दामन थाम लिया। इससे भाजपा को कुमाऊं में जबर्दस्त धक्का लगा है।
ऐसा माना जा है कि किसान आंदोलन और मुख्यमंत्री पद की जिजीविषा ने यशपाल आर्य को भाजपा छोड़ने को मजबूर किया है।छह बार के विधायक रहे कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य की लंबे समय से भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल होने की अफवाह चल रही थी। बताया जा रहा है कि वह पिछले कुछ समय से भाजपा से नाराज चल रहे थे। भाजपा के अंदर मुख्यमंत्री बदलने के सियासी ड्रामे से भी वह बहुत खुश नहीं थे। पुष्कर सिंह धामी की ताजपोशी के दौरान भी अटकलें लगायी जा रही थीं कि कुछ नेता नाराज हैं और वह मंत्री पद की शपथ लेने से इनकार कर रहे हैं।
यशपाल आर्य की नाराजगी उस समय सामने आ गयी जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं कुछ दिन पहले उन्हें मनाने देहरादून स्थित उनके आवास पर जा पहुंचे। इस मुलाकात को तब मुख्यमंत्री धामी ने औपचारिक मुलाकात करार दिया था लेकिन यह तभी तय हो गया था कि यशपाल आर्य अपने सुपुत्र संजीव के साथ जल्द ही कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं। यशपाल आर्य राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं और तब वह हरक सिंह रावत की बयानबाजी से काफी असहज हो गये थे और उन्होंने उन्हें इशारों मेें चुप रहने की नसीहत दे दी थी।
यशपाल आर्य के कांग्रेस में शामिल होने का बड़ा कारण तराई का किसान आंदोलन माना जा रहा है। उत्तराखंड के तराई वाले इलाकों- खटीमा, किच्छा, जसपुर व बाजपुर में किसान आंदोलित हैं। इन क्षेत्रों में किसान यूनियन का भी प्रभाव माना जा रहा है। यशपाल का बाजपुर विधानसभा क्षेत्र तो भारतीय किसान यूनियन का गढ़ है। वहां सबसे अधिक किसान हैं और किसान यूनियन के आंदोलन की प्रमुख धुरी भी वहीं मानी जाती है।
ऐसा माना जा रहा है कि इस बार किसान आंदोलन के चलते भाजपा की वर्ष 2022 की विधानसभा चुनाव की राह बहुत आसान नहीं रहने वाली नहीं है। खासकर तराई वाले इलाके में भाजपा को किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। ऐसे में यह भी तय था कि कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य को भी बाजपुर से कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ सकता था।
दूसरी ओर राजनीतिक हलकों में मुख्यमंत्री पद की जिजीविषा को भी इसका अहम कारण माना जा रहा है। कांग्रेस नेता, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पहले पंजाब में और फिर कुमाऊं के तराई में नया दांव चलकर मुख्यमंत्री के पद पर अनुसूचित जाति के व्यक्ति की वकालत कर प्रदेश की राजनीति को नया मोड़ दे दिया था। हालांकि तब राजनीतिक पंडित उनके इस दांव को उनके खासमखास माने जा रहे राज्यसभा के पूर्व सांसद प्रदीप टमटा से जोड़कर देख रहे थे लेकिन राजनीति में अपना कब पराया हो जाये यह भी सभी जानते हैं। हरीश रावत के खासमखास रहे रणजीत रावत इसका जीता जागता उदाहरण है।
बहरहाल कुछ भी हो यशपाल आर्य तथा संजीव आर्य के आने से कुमाऊं में कांग्रेस को नया जीवन मिला है। कद्दावर नेता इंदिरा हृदयेश के निधन से कुमाऊं में कांग्रेस में सूनापन आ गया था। दोनों के आने से यहां हाशिये पर गयी कांग्रेस को संजीवनी मिल गयी है। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि दोनों के आने से जहां दो सीटें पक्की हैं वहीं उनके आने से अन्य सीटों पर भी असर पड़ेगा। हालांकि प्रदेश में अधिकांश लोग इस प्रकार की राजनीति से खुश नहीं हैं और इसे अवसरवाद की संज्ञा दे रहे हैं। देखना है कि आने वाले दिनों में प्रदेश की राजनीति में और क्या गुल खिलते हैं।

रवीन्द्र राम
वार्ता
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