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कारबोंग जनजाति की स्थिति के आकलन हेतु सरकार गठित करे विशेषज्ञ समिति: हाईकोर्ट

अगरतला, 19 अक्टूबर (वार्ता) त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने विलुप्त हो रही कारबोंग जनजाति समुदाय की मौजूदा स्थिति का आकलन करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार से विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने को कहा है।
न्यायालय ने यह आदेश एक अखबार की रिपोर्ट के आधार पर दिया है, जिसमें कारबोंग जनजाति की दयनीय स्थिति को उजागर किया गया था।
कारबोंग त्रिपुरा के हलाम समुदाय की उप जनजाति है, जो अथरमुरा पहाड़ी क्षेत्र के छोटी झोपड़ियों में रहते हैं और इस समुदाय के 31 परिवारों में कुल 122 सदस्य हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक गैर सरकारी संस्थाओं के हस्तक्षेप के बाद बड़े कॉरपोरेट घरानों की ओर से सी.एस. आर. फंड के जरिए बीते वर्षों में विकास की कई पहल शुरू की गयी है, लेकिन यह इस समुदाय की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को सुधारने और इन्हें विलुप्त होने से बचाने के लिए पर्याप्त नहीं है।
मीडिया रिपोर्ट पर त्रिपुरा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महंती तथा न्यायाधीश सुभाशीष तलपात्रा की पीठ ने स्वत: संज्ञान लिया और राज्य सरकार से इस बारे में नौ नंबर से पहले हलफनामा दायर करने को कहा है। अब न्यायालय इस मामले में अगली सुनवाई 12 नवंबर को सुनवाई करेगा।
न्यायालय ने महाधिवक्ता और असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल से उपयुक्त अधिकारियों की एक टीम गठित करने को कहा, जो इस क्षेत्र का दौरा कर कारबोंग समुदाय की स्थिति और जरूरतों का आकलन करेंगी और इस बात की जानकारी हलफनामे दायर कर देनी होगी।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, “हम आदेश देते है कि यदि इस क्षेत्र में आकस्मिक कदम उठाने की जरूरत हो, तो न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा किये बिना केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकार इस तरह के कदम उठाने के लिए स्वतंत्र है।”
इसके साथ ही तेल एवं गैस कंपनी ओएनजीसी को उसके द्वारा कारबोंग समुदाय के लिए सीएसआर के तहत उठाए गए कदमों के बारे में हलफनामा दायर करने को कहा है।
उल्लेखनीय है कि ओएनजीसी ने जनवरी 2018 में कारबोंग समुदाय के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और पीने की पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए कारबोंगपारा को गोद लिया था।
संतोष जितेन्द्र
वार्ता
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