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द्रमुक, सहयोगी दलों ने की तमिलनाडु के राज्यपाल की बर्खास्तगी की मांग

चेन्नई, 09 नवंबर (वार्ता) तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी द्रमुक और उसके सहयोगी दलों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक ज्ञापन देकर तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि को बर्खास्त करने की मांग की है।
गौरतलब है कि राज्य सरकार और राजभवन के बीच कई मुद्दों पर टकराव की स्थिति बनी हुई है।
नौ पृष्ठों वाले इस ज्ञापन पर द्रमुक नीत धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील गठबंधन के सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें कांग्रेस, एमडीएमके, वीसीके, भाकपा, माकपा और अन्य शामिल हैं।
राष्ट्रपति कार्यालय को बुधवार को सौंपे ज्ञापन को मीडिया में जारी किया गया जिसमें द्रमुक और उसके सहयोगियों ने आरोप लगाया कि राज्य विधानसभा में पारित 20 विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के लिए लंबित हैं।
ज्ञापन में कहा गया कि ये सभी कृत्य राज्यपाल को शोभा नहीं देते। श्री रवि ने अनुच्छेद 159 के अंतर्गत ली गई शपथ का उल्लंघन किया है, जिसमें उन्होंने संविधान और कानून की रक्षा और बचाव करने और तमिलनाडु के लोगों की सेवा और कल्याण के लिए खुद को समर्पित करने की कसमें खाईं थी।
ज्ञापन में कहा गया है कि अनुच्छेद 156 (1) के अंतर्गत राज्यपाल माननीय राष्ट्रपति की इच्छा से कार्य करते हैं। इसलिए, हम महामहिम से अनुरोध करते हैं कि वह श्री रवि को तमिलनाडु के राज्यपाल के पद से तत्काल हटाएं और संविधान के मूल्यों की रक्षा करें।
राज्य सरकार ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना के अनुसार भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य है। एक राज्यपाल जिसे इसके आदर्श पर विश्वास नहीं है, वह संवैधानिक पद धारण करने योग्य नहीं है। यह भी आवश्यक है कि राजनीति करने वाले को राज्यपाल नहीं बनाना चाहिए। संविधान के अंतर्गत राज्यपाल किसी राज्य का प्रमुख होता है और राज्य सरकार के सभी कार्यकारी निर्णय उसके नाम पर लिए जाते हैं। इसलिए राज्यपाल जो केंद्र सरकार का नामित व्यक्ति है और वैचारिक और कार्यात्मक रूप से निर्वाचित राज्य सरकार का विरोध करने वाला एक अनिर्वाचित व्यक्ति हैं, वह संवैधानिक संरचना के लिए के एक दोष समान हैं और लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी हैं।
संविधान निर्माताओं ने कभी नहीं सोचा होगा कि राज्यपाल राज्य की निर्वाचित सरकार की नीतिओं का खुलेआम विरोध करेगा या विधायिका द्वारा पारित कानून को बाधित करेगा। ऐसी स्थिति को केवल निरंकुश कहा जा सकता है और तमिलनाडु में ऐसी स्थिति बनी हुई है।
ज्ञापन में कहा गया कि तमिलनाडु में विभिन्न धर्मों, भाषाओं और जातियों के लोग शांतिपूर्वक रहते हैं, राज्यपाल इस राज्य के धर्मनिरपेक्ष आदर्शों को सार्वजनिक रूप से नहीं मानते हैं और विभाजनकारी बयानबाजी में लिप्त रहते हैं।
ज्ञापन में कहा गया कि यह हमारी सरकार के लिए शर्मिंदगी की बात है, जो इस देश की धर्मनिरपेक्ष भावना के लिए प्रतिबद्ध है। राज्यपाल सार्वजनिक रूप से खतरनाक, विभाजनकारी और धार्मिक बयानबाजी कर रहे हैं, जो एक राज्यपाल के लिए अशोभनीय है। उनके भाषण नफरत फैलाने वाले और लोगों में सांप्रदायिक अशांति उत्पन्न करने वाले होते हैं।
ज्ञापन में कहा गया कि हाल ही में राज्यपाल ने एक टिप्पणी दी कि बाकी दुनिया की तरह भारत भी एक धर्म पर निर्भर करता है। यह बयान देश के संविधान का अपमान है क्योंकि भारत अपने संविधान और कानूनों के अनुसार चलता है किसी धर्म के आधार पर नहीं और इन बयानों से तमिल भावना और गौरव को आघात पहुंचता है।
अभय.श्रवण
वार्ता
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