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मदर्स डे पर पेटा की ‘ नो टू लैदर’ मुहिम

कोलकाता 11 मई (वार्ता) दुनिया भर में पशुओं के साथ होने वाली अमानवीयता के विरोध में सक्रिय पशु अधिकार संगठन “ पीपल फॉर द इथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स ” (पेटा) के सदस्य जानवरों से बने उत्पादों को बनाने में उनके खिलाफ होने वाली जबरदस्त हिंसा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए और इन उत्पादों के विरोध में मदर्स डे (14 जून) से पहले ही शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में विरोध प्रदर्शन करेंगे।
संगठन की ओर से गुरुवार को यहां जारी बयान के मुताबिक, इस अभियान का उद्देश्य जानवरों के प्रति उनकी त्वचा को कोट, जूते, बैग और अन्य सामान बनाने से पहले कठोर होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में जागरूकता फैलाना है।इस मुहिम को “ नो टू लैदर” नाम दिया जायेगा।
पेटा इंडिया की कैंपेन मैनेजर राधिका सूर्यवंशी ने कहा कि जो लोग यह सोच भी नहीं सकते कि वह इंसानों के बच्चों से बनी खाल के कोट पहनेंगे उन्हें गाय या फिर दूसरे सेंसेटिव जानवरों की खाल से बने कोट या अन्य साजोसामान भी नहीं इस्तेमाल करने चाहिए। इन जानवरों को उनकी खाल के लिए अत्यधिक प्रताड़ित किया जाता है यहां तक कि उनका जीवन भी खत्म कर दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि पेटा इंडिया सभी को केवल शाकाहारी चमड़े या अन्य प्राकृतिक या सिंथेटिक पशु-मुक्त कपड़ों से बने उत्पादों को चुनने और सभी जानवरों से प्राप्त वस्तुओं को अपनी अलमारी से हटाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
बयान में कहा गया है कि भारत में गायों, भैंसों और चमड़े के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जानवरों को अक्सर इतनी बड़ी संख्या में वाहनों में भर दिया जाता है कि उनकी हड्डियाँ टूट जाती हैं। बूचड़खाने में काम करने वाले उनकका गला काटते हैं जो इस प्रक्रिया से बच जाते हैं वह अन्य जानवरों का गला कटते और खाल उतरते देखते हैं। कभी कभी तो जब जानवरों की खाल उतारी जा रही होती है ,उस समय में वह हाेश में होते हैं। चमड़े के इन कारखानों से निकलने वाला पानी नदियों और नालों को दूषित करता है, जिससे साफ जल में पनपने वाले जीवन को नुकसान पहुंचाता है। इन कारखानों में काम करना मनुष्यों में कैंसर, श्वसन संक्रमण और अन्य बीमारियों का कारण बनताहै।
बयान में कहा गया है कि देश भर के लगभग सभी प्रमुख जूतों और कपड़ों की दुकानों पर ऐसे उत्पाद उपलब्ध हैं जिनमें पशु खाल का इस्तेमाल नहीं किया गया है। । वैश्विक ‘पेटा-अनुमोदित वीगन’ लोगो चमड़े, रेशम, ऊन, फर और पंखों जैसे पशुओं की खाल से बनने वाले सामान की बजाय शाकाहारी सामग्री से बने हैंडबैग, जूते, कपड़े, सामान, फर्नीचर और घरेलू सजावट की वस्तुओं को प्रमाणित करता है। दुनिया भर में 1000 से अधिक कंपनियां पेटा के इस लोगो का इस्तेमाल अपने सामान पर कर रहीं हैं ताकि भारत तथा अन्य जगहों पर लोग उनके सामान को देखकर ही समझ जाएं कि इनके बनाने में पशु उत्पाद का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
सोनिया अशोक
वार्ता
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