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अस्पतालों को स्वास्थ्य बीमा प्रदाता बनना चाहिए : डॉ शेट्टी

हैदराबाद, 16 मई (वार्ता) तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में नारायण हृदयालय के अध्यक्ष एवं पद्म भूषण प्राप्त डॉ देवी शेट्टी ने कहा कि अस्पतालों या बीमा कंपनियों को स्वास्थ्य बीमा प्रदाता बनना चाहिए।
भारत में सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की वकालत करने वाले डॉ. शेट्टी ने सोमवार की शाम को एफटीसीसीआई (फेडरेशन ऑफ तेलंगाना चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री) द्वारा आयोजित 'विजन 2030- तेलंगाना राज्य में सभी लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण एवं सस्ती स्वास्थ्य सेवा' पर आयोजित एक गोलमेज बैठक में एकत्रित हुए स्वास्थ्य पेशेवरों को वर्चुअल रूप से संबोधित करते हुए कहा कि रोगियों को कोई गलत सलाह नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि लगभग 93 प्रतिशत भारतीय लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और सुझाव दिया कि उन्हें स्वास्थ्य बचत की संस्कृति विकसित करनी चाहिए और प्रति माह कम से कम 100 रुपये जमा करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य बचत खाता (एचएसए) उन लोगों के लिए या उनके द्वारा बनाया गया एक कर-लाभ खाता हो सकता है। यह लोगों को चिकित्सा खर्चों को बचाने में सहायता प्रदान करता है।
उन्होंने कहा कि एक कर्मचारी के स्वामित्व वाले एचएसए को कर्मचारी और नियोक्ता दोनों द्वारा वित्त पोषित किया जा सकता है और भारत में कई ऐसे कई राज्य हैं जो इसका अनुसरण कर रहे हैं। तेलंगाना भी इस पहल का नेतृत्व कर सकता है।
नारायण हृदयालय के अध्यक्ष ने कहा कि एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत को प्रति वर्ष 6.5 करोड़ सर्जरी करने की आवश्यकता होती है लेकिन देश में केवल 2.6 करोड़ ही सर्जरी होती है और शेष 3.9 करोड़ सर्जरी नहीं हो पाती।
उन्होंने कहा कि या तो वे धीरे-धीरे पीड़ित हो रहे हैं या सर्जरी की कमी के कारण मर रहे हैं, उन्होंने कहा कि इनमें से 70 से 80 प्रतिशत रोगियों का सर्जरी करना बहुत आसान है और यह भी उनके लिए सुलभ नहीं हैं। इन सुविधाओं की कमी उन्हें डॉक्टरों की कमी के कारण नहीं है बल्कि इसलिए हो रही है क्योंकि वे भुगतान करने में असमर्थ हैं।
डॉ शेट्टी ने कहा कि उनके अस्पतालों का समूह नारायण हृदयालय, प्रति वर्ष देश में 14 प्रतिशत दिल की सर्जरी करता है। अगर किसी गरीब मरीज को दिल की सर्जरी करवाने की सलाह दी जाती है, जिसकी लागत तीन लाख रुपये है, तो वे केवल आंसू बहा सकते हैं क्योंकि वे अक्षम हैं। वे अधिकतम एक लाख रुपये का प्रबंधन कर सकते हैं, लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।
उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकार को दोषी ठहराया जा सकता है क्योंकि वह ऐसा नहीं कर रही है लेकिन हमें यह करना चाहिए, जिसका मतलब है कि जो लोग सरकार को कर देते हैं, वे अप्रत्यक्ष रूप से ऐसा करने में सक्षम हैं। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश, हम 11 प्रतिशत के कर-जीडीपी अनुपात के साथ एक बहुत बड़ा देश हैं लेकिन अपने स्वास्थ्य देखभाल पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3.16 प्रतिशत खर्च करते हैं।
उन्होंने कहा “ इसमें सरकार का योगदान केवल 1.28 प्रतिशत है और अगर यही स्थिति है, तो हम सरकार से स्वास्थ्य सेवा के लिए बजट आवंटन बढ़ाने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं, तो हमारे पास इसका एकमात्र विकल्प स्वास्थ्य बीमा है।”
डॉ शेट्टी ने कहा कि स्वास्थ्य बीमा में तीन प्रमुख हितधारक अस्पताल, बीमा कंपनी और रोगी हैं। दुर्भाग्यवश वे एक दुसरे पर भरोसा नहीं करते हैं और ऐसी स्थिति में मापनीयता काम नहीं करेगी। रोगियों को आज अस्पतालों और बीमा कंपनियों का लाभ प्राप्त करने के लिए भुगतान करना पड़ता है।
अभय अशोक
वार्ता
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