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आरटीआई से हुआ जीएसटी फर्जीवाड़े का पर्दाफाश, विभाग ने रिकार्ड लिया कब्जे में

सिरसा, 06नवम्बर(वार्ता) कृषि यंत्रों के फर्जी बिल काटने और जीएसटी न भरने की शिकायत मिलने पर केंद्रीय जीएसटी विभाग ने गत शनिवार को यहां स्थित नवभारत बीज कम्पनी पर छापा मारा तथा बिल बुक और रसीद बुक समेत समस्त रिकार्ड कब्जे में ले लिया है।
यह कार्रवाई लगभग चार घंटे चली। कम्पनी पर करोड़ों रुपए के जीएसटी गबन का आरोप है। इस मामले में कृषि विभाग के अधिकारियों पर भी गाज गिरने की सम्भावना है। कृषि विभाग की योजना के अनुसार लघु एवं सीमांत किसानों को किराये पर कृषि यंत्र उपलब्ध कराने के लिये उसकी ओर से कस्टम हायरिंग सैंटर(सीएचसी) स्थापित किए गए हैं। सिरसा जिले में वर्ष 2017-18 में 70 गांवों में सीएचसी स्थापित किये हैं वहीं चालू वित्त वर्ष में भी लगभग 60 सीएचसी स्थापित किए गए हैं। किसान पराली को जलाएं नहीं इसका प्रबंधन करने हेतु ही ये सेंटर स्थापित किए गए थे।
आरटीआई से मिली सूचना से इसमें बड़े स्तर का भ्रष्टाचार होने का मामला सामने आया है। जिले के गुडियाखेड़ा गांव के आरटीआई एक्टिविस्ट ने मामले में विभाग के उच्चाधिकारियों से जांच की मांग की है वहीं एक शिकायत सीएम विंडो पर भी दर्ज कराई है। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक सिरसा जिले में वर्ष 2017-18 में कुल 70 सीएचसी स्थापित किए गए जिनके लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की तरफ से चार करोड़ 51 लाख 71 हजार 734 रूपए का बजट जारी किया गया। जिन किसान समूह या समितियों को सीएचसी स्थापित कराए गये उन्हें 10 लाख से 75 लाख रुपए के कृषि यंत्र खरीदने थे जिन पर विभाग की तरफ से 40 से 80 फीसदी का अनुदान दिया गया।
सूचना के मुताबिक इन हायरिंग सैंटर में किसान समूह या समिति को कम्बाईन, ट्रैक्टर, हैप्पी सीडर, प्लो, रीपर, स्ट्रा बेलर, स्ट्रा चोपर, हे रेक, स्ट्रा श्रेडर, जीरो ड्रील मशीन सहित अन्य उपकरण खरीदने थे जो सरकार द्वारा निर्धारित किराये पर किसानों को पाराली के प्रबंधन हेतु दिए जाने थे। लेकिन वास्तविकता में अधिकतर जगह सीएचसी के नाम पर ट्रैक्टर या कुछेक कृषि यंत्र खरीदे गए जिन्हें भी वे लोग अपने निजी कार्यों में इस्तेमाल कर रहे हैं। सीएचसी के बारे में तो उस गांव के लोगों को पता तक नहीं है।
बताया जाता है कि कृषि विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से सीएचसी संचालकों ने कृषि यंत्रों के महज बिल कटवाए हैं और विभाग के लोगों ने उनका भौतिक सत्यापन अपने कार्यालय में ही कर दिया। सीएससी में किस स्तर का भ्रष्टाचार हुआ है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2017-18 में जिला सीएचसी के लिए 70 आवेदन आए थे जिन्हें स्वीकार कर लिया गया वहीं इस वर्ष 2018-19 में 50 सीएससी के लिए 426 आवेदन विभाग में जमा हुए।
हालांकि इस बार ड्रा सिस्टम प्रणाली से पात्र लोगों का चयन किया गया। लेकिन इसमें भी जो शर्तें विभाग की तरफ से जारी हुई उन्हें भी कथित तौर पर नज़रंदात कर चहेतों को फायदा पहुंचाने की बू आ रही है।
सूचना यह भी खुलासा हुआ है कि वर्ष 2017-18 में स्थापित सीएचसी की सूची गत दिसम्बर से पहले जारी की गई लेकिन अधिकतर कृषि यंत्रों के बिल मार्च के महीने के हैं और इनमें से भी एक तिहाई बिल एक ही फर्म की ओर से काटे गए। इन बिलों में पांच बिल कम्बाईन के हैं लेकिन हकीकत में यह फर्म कम्बाईन बनाती ही नहीं है। इसके अलावा सभी कृषि यंत्रों के बिलों पर 12 फीसदी जीएसटी लिया गया लेकिन जांच से पता लगा कि उक्त फर्म ने वह जीएसटी कथित तौर पर अदा ही नहीं किया यानि इसकी रिटर्न दाखिल नहीं की गई। इस फर्म ने अलग अलग सीरीज की बिल बुकों में से एक ही दिन में करोड़ों रूपये के बिल काटे हैं। फर्म ने मई 2018 में नया सीएसटी नम्बर ले लिया जिससे भी उसने पिछले दो माह में करोड़ों रूपए के बिल काट दिए जिसकी भी रिटर्न नहीं भरी गई।
शिकायतकर्ता के अनुसार बिलों में दिखाई गये उपकरणों की खरीद का भौतिक सत्यापन विभाग के अधिकारियों और प्रगतिशील किसान ने किया है। उसका कहना है कि अगर इस मामले की जांच होती है तो करोड़ों रूपये के जीएसटी का गोलमाल सामने आ सकता है।
कृषि विभाग के उप-निदेशक बाबू लाल से जब इस संदर्भ में बात की गई तो उन्होंने कहा कि विभाग के उच्चाधिकारियों से कोई पत्र आएगा तब इस पर कोई संज्ञान लिया जाएगा फिलहाल इस बाबत उन्हें कुछ मालूम नहीं है।
सं.रमेश1729वार्ता
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