राज्य » पंजाब / हरियाणा / हिमाचलPosted at: Feb 26 2019 6:33PM डर और चिंता से हो सकते हैं एंग्जाइटी के शिकार: डॉ. मक्कड़अमृतसर, 26 फरवरी (वार्ता) भारत में डिस्प्रेसिव डिस्ऑर्डर और एंग्जाइटी डिस्ऑर्डर का शिकार मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। मनोचिकित्सक डॉ. हरजोत सिंह मक्कड़ ने मंगलवार को बताया कि हर समय की हड़बड़ाहट, एक काम करते वक्त दूसरे काम पर ध्यान बंटना, सब कुछ सही होने के बावजूद दिलों दिमाग में डर बना रहा, छोटी-छोटी बातों पर चिंता, ऐसे अनेक लक्षण हैं इन बीमारियों के। हर समय की असहज और डर का भाव रहना एंग्जाइटी है। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक एंग्जाइटी का बना रहना कई अस्वस्थ आदतों और रोगों का शिकार बना देता है। इस विषय पर अमृतसर में आयोजित एक विशेष वर्कशॉप में डॉ. मक्कड़ ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हर इंसान को चिंता या डर का अनुभव जरूर होता है लेकिन जब ये दोनों ही आपके नियंत्रण से बाहर हो जाएं तो समझ लें कि आप एंग्जाइटी का शिकार हो गए हैं। एंग्जाइटी के लक्षण छह महीने से अधिक समय तक बने रहें तो यह समस्या अत्यंत गंभीर हो जाती है और जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने लगती है। हर समय चिंता, बेचैनी, वास्तविक या काल्पनिक घटनाओं पर आधारित भविष्य का डर तन और मन, दोनों पर बुरा असर डालता है। एंग्जाइटी के प्रमुख लक्षण थकान, सिरदर्द और अनिद्रा हैं। डॉ. मक्कड़ ने कहा कि एंग्जाइटी कई प्रकार की होती है। जनरालाइज्ड 'एंग्जाइटी डिसऑर्डर' इस डिसऑर्डर से पीड़ित लोग अत्यधिक चिंता करते हैं, यहां तक कि बिना वजह तनाव और एग्रेसिव हो जाते हैं। 'ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर' इससे पीड़ित लोग लगातार सोचते रहते हैं या भयभीत रहते हैं। ऐसे लोग पैसों का उपयोग करने की बजाय उसे इकट्ठा करते रहते हैं। 'पैनिक डिसऑर्डर' इस समस्या से जूझ रहे लोगों को अक्सर ऐसा महसूस होता है जैसे उनकी सांस रुक रही है या उन्हें हार्ट अटैक आ रहा है। 'पोस्टट्रॉमैटिक स्ट्रेस' यह ऐसी स्थिति है, जो किसी तीव्र आघात वाली घटना के बाद विकसित होती है। 'सोशल एंग्जाइटी डिसऑर्डर' इसमें व्यक्ति रोजमर्रा के सामाजिक जीवन में अत्यंत सतर्क रहता है। उसे लगता है कि सबका ध्यान उस पर है। डॉ. मक्कड़ के अनुसार छह महीने से अधिक एंग्जाइटी के लक्षण रहने पर इसका प्रभाव तन और मन, दोनों पर पड़ता है। लंबे समय तक रहने पर अवसाद हो सकता है। एंग्जाइटी से ग्रस्त व्यक्ति लोगों से कटा-कटा रहता है और उसमें आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। समस्या बढ़ने पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता घटती जाती है और किसी काम में मन नहीं लगता। याददाश्त भी प्रभावित होती है। एंग्जाइटी में शरीर से एपिनिफ्रिंन्स हार्मोन स्नवित होते हैं, जिससे दिल की धड़कन बढ़ जाती है, थकावट व सांस रुकने लगती है। इसलिए यह जरूरी है कि लोग अपने अस्त व्यस्त जीवन शैली को सुधारें। नियमित समय पर खाएं और सोने तथा उठने का भी एक निश्चित समय बनाएं। नींद की कमी से मस्तिष्क अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पाता। अनिद्रा से एंग्जाइटी और अवसाद जैसे रोगों का खतरा बढ़ जाता है। वैसे इन बीमारियों का चिकित्सा विज्ञान में उपचार संभव है। ठाकुर.श्रवण वार्ता