राज्य » पंजाब / हरियाणा / हिमाचलPosted at: Mar 16 2019 6:26PM लोकसभा चुनाव में चुनौतीपूर्ण बनी कांग्रेस में संगठनात्मक कमजोरी और आपसी गुटबंदी
सिरसा,16 मार्च(वार्ता) हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी में संगठनात्मक कमजोरी और नेताओं में गुटबंदी राज्य में होने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिये एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है और हाईकमान इससे जल्द निपटने के लिये दिल्ली में हर रोज पार्टी के प्रदेश के नेताओं के साथ मत्थापच्ची कर रहा है।
हाईकमान ने इस गुटबंदी को समाप्त करने तथा लोकसभा चुनावों के लिये सम्भावित उम्मीदवारों के नामों पर विचार करने कल 15 सदस्यों की समन्वय समिति का गठन किया था लेकिन इसे लेकर प्रदेश पार्टी में ऐसा कोई तूफान उठा कि इस समिति को कुछ समय बाद ही रद्द कर दिया गया। इस घटनाक्रम से पार्टी में न केवल अंदरूनी कलह होने की बात उबर कर सामने आ गई है बल्कि प्रदेश में प्रदेश के बड़े नेताओं के एक मंच पर आने सम्भावनाओं पर भी सवालिया निशान लग गया है।
हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने कल यहां एक संवाददाता सम्मेलन में दावा किया था कि पार्टी के प्रदेश नेताओं में अब कोई मन और मतभेद नहीं है लेकिन हाईकमान द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में समन्वय समिति का गठन किये जाने से पार्टी नेताओं में ऐसी खलबली मची कि डा0 तंवर समेत पार्टी में कथित विरोधी धड़े के सभी नेता अपने कार्यक्रम रद्द पर दिल्ली पहुंच गये।
उधर श्री हुड्डा के नेतृत्व में समन्वय समिति के गठन के ऐलान के बाद उनके समर्थकों की बांछे खिल उठीं और वे अभी बधाईयां दे ही रहे थे कि तंवर गुट ने समिति का गठन रद्द होने की सूचना फ्लैश कर इस पर पानी फेर दिया। इससे यह भी साबित हुआ कि पार्टी के केंद्रीय और प्रदेश के नेता भले ही लोकसभा चुनावों के लिये पार्टी के एकजुट होने के दावे करते हों लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। पार्टी में घटे इस घटनाक्रम और बने ताजा परिदृश्य से पार्टी कार्यकर्ता भी मायूस हुआ है।
प्रदेश में इस समय अन्य राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव के लिये अपने उम्मीदवार तय करने व्यस्त हैं वहीं कांग्रेस अंदरूनी लड़ाई से ही निपट नहीं पा रही है। इसी अंदरूनी कलह के कारण ही 14 फरवरी 2014 को पार्टी प्रदेशाध्यक्ष की कमान सम्भालने वाले अशोक तंवर अपने पांच के कार्यकाल के दौरान जिला और ब्लॉक स्तर पर संगठनात्मक नियुक्तियां तक नहीं कर सके जिसका खमियाज़ा पार्टी को गत लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा। लोकसभा चुनावों में पार्टी राज्य की कुल दस सीटों में से केवल रोहतक सीट की हासिल कर पाई और विधानसभा चुनावों में यह 17 सीटों तक ही सिमट कर रह गई।
फिलहाल समन्वय समिति के गठन की शुरूआती कवायद ही सिरे नहीं चढ़ना प्रदेश में पार्टी के लिये बड़ा झटका है जबकि चुनाव लड़ने के लिये अभी काफी रास्ता तय करना बाकी है। कांग्रेस अगर जल्द ही इस नाकामी से उबर नहीं पाई तो जाहिर है कि जनता के बीच इसका कोई अच्छा संकेत नहीं जाने वाला है। अन्य राजनीतिक दल भी कांग्रेस में हुये इस प्रकरण पर नजदीक से नजर रखे हुये हैं और मौका लगते ही इसे भुनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे।
सं.रमेश1736वार्ता