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बाबा भलखू स्मृति साहित्यिक यात्रा एवं गोष्ठी में भाग लेंगे हिमाचल के 33 साहित्यकार

शिमला, 07 अगस्त (वार्ता) विश्व धरोहर के रूप में विख्यात हिमाचल प्रदेश की शिमला-कालका रेल लाईन पर 11 अगस्त को द्वितीय अनूठा इंजिनियर बाबा भलखू स्मृति साहित्यिक यात्रा एवं गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा जिसमें राज्य के लगभग 33 साहित्यकार भाग लेंगे।
यात्रा एवं गोष्ठी का आयोजन हिमालय साहित्य, संस्कृति एवं पर्यावरण मंच द्वारा किया जा रहा है। बाबा भलखू राज्य में चायल के समीप झाझा गाँव का एक अनपढ़ लेकिन विलक्षण प्रतिभा का धनी ग्रामीण था जिसकी सलाह एवं सहयोग से अंग्रेज इंजीनियर शिमला-कालका रेल लाइन का निर्माण करने में सफल रहे।
मंच के अध्यक्ष एवं लेखक एस. आर. हरनोट ने बताया कि हिंदुस्तान-तिब्बत सड़क के निर्माण के वक्त बाबा भलखू के मार्ग निर्देशन में न केवल इस परियोजना का सर्वेक्षण बल्कि सतलुज नदी पर अनेक पुलों का निर्माण भी हुआ था जिसके लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार के लोक निर्माण विभाग ने ओवरसियर की उपाधि से नवाजा था।
वर्ष 1947 में इस पद से सेवानिवृत होने के उपरांत उनकी सेवायें उस वक्त कालका-शिमला रेल लाइन के सर्वेक्षण में भी ली गयीं जब परवाणु से शिमला के लिए चढ़ाई देखकर ब्रिटिश अभियंताओं के पसीने छूट गये। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस परियोजना का आगे का सर्वेक्षण कैसे किया जाए। बताया जाता है की बाबा भलखू ने अंग्रेज अभियंताओं की यह मुश्किल आसान कर दी। वह एक छड़ी से नपाई करता और जगह जगह सिक्के रख देता और उसके पीछे चलते हुए अंग्रेज सर्वेक्षण का निशान लगाते चलते और इस तरह इस अनपढ़ ग्रामीण ने बड़ी सहजता से इस दुसाध्य कार्य को अंजाम दिया था।
बाबा भलखू की स्मृति में शिमला पुराने बस स्टेशन के साथ केंद्र सरकार के रेलवे विभाग ने एक संग्रहालय भी स्थापित किया है। कालका से शिमला तक 95.57 किलोमीटर लम्बी रेल लाइन में 103 सुरंगे हैं जिनमें सबसे लम्बी 33 नम्बर सुरंग बड़ोग की है और यह भी भलखू के दिमाग की ही देन है। गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड में इस रेल लाइन को उत्कृष्ट नैरो गेज इंजीनीयरिंग का दर्जा हासिल है और अब इसे विश्व धरोहर से भी सम्मानित किया जा चुका है। इस रेल लाइन का निर्माण ब्रिटिश इंजिनीयर हर्बर्ट हेरिंगटन की देखरेख में 20 अप्रैल1855 को शुरू होकर 11 नवम्बर 1903 को पूर्ण हुआ। इस रेल लाइन पर 20 स्टेशन, 103 सुरंगें, 912 मोड़ और 969 छोटे-बड़े पुल हैं। यूनेस्को ने इस रेल लाइन को गत आठ जुलाई, 2008 को विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान किया था।
श्री हरनोट ने बताया कि यात्रा सुबह लगभग 10.40 बजे शिमला से शुरू होगी और बड़ोग तक जाएगी और सायं तीन बजे वापिस शिमला की ओर रवाना होगी। गोष्ठी में कविता, गजल, कहानी और संस्मरण के सत्र होंगे तथा इन्हेंं इस रेल मार्ग के प्रमुख स्टेशनों के नाम पर रखा गया है।
सं.रमेश1635वार्ता
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