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अत्याधिक जल दोहन से पंजाब जल्द बन सकता है मरुस्थल

जालंधर 10 सितंबर (वार्ता) पंजाब में पारम्परिक फसलों धान और गेहूं की खेती के लिए किसानों की आेर से किए जा रहे अत्याधिक जल दोहन के कारण राज्य में भूमिगत जल का स्तर प्रति वर्ष औसतन आधा मीटर की दर से नीचे गिर रहा है। जिससे राज्य का दोआबा क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित है।
पंजाब में एक अच्छी तरह से विकसित सिंचाई प्रणाली है। वर्तमान में नहर के पानी के माध्यम से लगभग 27 प्रतिशत खेती वाले क्षेत्र की सिंचाई की जा रही है और 72 प्रतिशत भूजल के माध्यम से सिंचाई की जा रही है। कंडी बेल्ट के तहत आने वाले लगभग एक प्रतिशत खेती वाले क्षेत्र में बारिश से सिंचाई की जाती है। खाद्यान्नों के अंतर्गत विशेष रूप से धान के अंतर्गत निरंतर विस्तार क्षेत्र के परिणामस्वरूप राज्य के जल संसाधनों का दोहन हो रहा है। भूजल पर निर्भरता के कारण राज्य में ट्यूबवेलों का विकास हो रहा है, जिससे राज्य भूजल के साथ-साथ ऊर्जा की खपत पर और बोझ बढ़ा है।
राज्य में इस समय प्रति वर्ग किलोमीटर में 138 नलकूप के हिसाब से कुल चौदह लाख 19 हजार नलकूप चल रहे हैं जो धरती के नीचे से पानी का अत्याधिक दोहन कर रहे हैं। इन नलकूपों को पंजाब स्टेट पावर कॉर्पोरेशन (पावरकॉम) द्वारा 12008.98 लाख किलोवाट बिजली दी जा रही है। बिजली का बिल माफ होने के कारण भी किसान लापरवाह हो रहे हैं और बिना जरूरत के भी नलकूप चाल रहे हैं। कुप्रबंधन के कारण राज्य में भूमिगत जल का स्तर 20 से 30 मीटर तक नीचे चला गया है जबकि संगरूर और पातड़ा में यह स्तर 40 मीटर तक नीचे चला गया है। संगरूर, पटियाला, लुधियाना, मोगा, बरनाला, जालंधर और कपूरथला में धान की खेती होने के कारण इन क्षेत्रों में जलस्तर 200 मीटर तक नीचे चला गया है।
भूजल पर अत्यधिक निर्भरता से राज्य में भूजल स्तर में जबर्ददस्त गिरावट आई है। भूजल मूल्यांकन रिपोर्ट 2017 के मसौदे अनुसार, पिछले 35 वर्षों (1984-2017) में, राज्य के 85 प्रतिशत क्षेत्र में भूजल स्तर नीचे चला गया है, जबकि शेष लगभग 15 प्रतिशत क्षेत्र में, इस अवधि के दौरान इसमें सुधार आया है। यह देखा गया है कि महत्वपूर्ण भूजल स्तर गिरने के क्षेत्र में, औसत भूजल स्तर में गिरावट प्रति वर्ष लगभग 0.40 मीटर है, जबकि भूजल स्तर में गिरावट के पूरे क्षेत्र को लेते हुए, भूजल स्तर गिरने की दर प्रति वर्ष लगभग 0.50 मीटर है।
ठाकुर, उप्रेती
जारी वार्ता
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