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पूर्व जत्थेदार ज्ञानी पूरन सिंह का निधन

अमृतसर, 25 सितंबर (वार्ता) श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी पूरन सिंह का बुधवार सुबह निधन हो गया।
वह 75 वर्ष थे तथा हृदय रोग से पीड़ित थे। परिवारिक सूत्रों अनुसार जत्थेदार का अंतिम संस्कार गुरुवार सुबह गुरुद्वारा शहीदां चाटीविंड के श्मशान घाट पर किया जाएगा।
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति ने आज शोकसभा का आयोजन कर श्री अकाल तख़्त साहब के पूर्व जथेदार ज्ञानी पूरन सिंह को श्रद्धांजलि दी। एसजीपीसी के प्रधान भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने शोक संतप्त परिवार के साथ संवेदना व्यक्त की। इसके इलावा तख़्त श्री केसगढ़ साहब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह, शिरोमणि समिति के मुख्य सचिव डॉ रूप सिंह, सचिव मनजीत सिंह बाठ, बलविन्दर सिंह जौड़ासिंघा, महेन्दर सिंह आहली और अवतार सिंह सैंपला ने भी पूरन सिंह के निधन पर दुख प्रकट किया है।
इसी दौरान एसजीपीसी के मुख्य दफ़्तर स्थित तेजा सिंह समुद्री हाल में शोक सभा की गई। इस अवसर पर मूलमंत्र और गुरुमंत्र के जाप करके दिवंगत की आत्मा को श्रद्धांजलि देने के साथ अरदास की गई। शोक के तौर पर शिरोमणि समिति के दफ़्तर अपराह्न आधा दिन के लिए बंद रहे।
वर्ष 1984 में श्री दरबार साहिब पर हुई सैनिक कार्रवाई दौरान ज्ञानी पूरन सिंह तीन दिनों तक दरबार साहिब के अंदर ही रहे तथा घटना के चश्मदीद थे। उस समय वे प्रमुख ग्रंथी के पद पर नियुक् थे। ज्ञानी पूरन सिंह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की प्रधान बीबी जागीर कौर को सिख पंथ से निष्कासित करने के लिए विशेष चर्चा में रहे थे।
भाई रणजीत सिंह को निलंबित करने के बाद 10 फरवरी 1999 को ज्ञानी पूरन सिंह को कार्यकारी जत्थेदार अकाल तख्त नियुक्त किया गया था। एक घटना क्रम में एसजीपीसी की कार्यकारिणी ने 28 मार्च 1999 को ज्ञानी पूरन सिंह को जत्थेदार अकाल तख्त के पद से बर्खास्त कर दिया और उन्हें स्वर्ण मंदिर के ग्रंथी के रूप में अपने पद से निलंबित कर दिया। उनके निलंबन की अवधि के दौरान उनका मुख्यालय मुक्तसर में रहा। कार्यकारिणी ने ज्ञानी जोगिंदर सिंह वेदांती, ग्रंथी स्वर्ण मंदिर, को ज्ञानी पूरन सिंह के स्थान पर कार्यकारी जत्थेदार नियुक्त किया। अपने निलंबल से कुछ घंटे पहले ही ज्ञानी पूरन सिंह ने एसजीपीसी के चार कार्यकारी सदस्यों को सिख पंथ बहिष्कृत कर दिया था।
ज्ञानी पूरन सिंह को अप्रैल के महीने में जत्थेदार बनाया गया था। जत्थेदारों को बर्खास्त करने और नियुक्त करने का इतिहास 13 महीने के अंतराल के बाद दोहराया गया, जब उसी कार्यकारिणी, जिसने ज्ञानी पूरन सिंह जत्थेदार को नियुक्त किया था, उसी ने पूरन सिंह को उनके पद से हटा दिया। दिलचस्प रूप से भाई रणजीत सिंह को खालसा स्थापना के त्रिशताव्दी समारोह की शुरुआत से पहले जत्थेदार के रूप में हटा दिया गया था और समापन के कुछ दिन पहले ज्ञानी पूरन सिंह को बर्खास्त कर दिया गया था।
सं.ठाकुर.श्रवण
वार्ता
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