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दिग्गजों का भविष्य तय करेगा विधानसभा चुनाव, भाजपा के 75 पार मिशन पर रहेगी नजर

जींद,12 अक्टूबर(वार्ता) हरियाणा में 21 अक्तूबर को होने जा रहे विधानसभा चुनाव सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अन्य राजनीतिक दलों के लिए जहां सबसे अहम माने जा रहे हैं वहीं इन चुनावों पर कई दिग्गजों का भविष्य भी टिका हुआ है।
इस चुनाव में हार-जीत का फैसला इन नेताओं के भविष्य का फैसला करेगा। राज्य में इस बार के विधानसभा चुनावों में आए दिन चुनावी समीकरण बदल रहे हैं। सत्तारूढ़ भाजपा के सामने मुद्दा चुनाव जीतने का नहीं बल्कि मिशन 75 पार हासिल करना है। अब तक आए सभी चुनावी सर्वेक्षणों में भाजपा को बढ़त दिखाई जा रही है लेकिन किसी भी सर्वेक्षण में अब तक 75 पार के पार्टी के नारे पर मुहर नहीं लगाई है। भाजपा अगर इस नारे के साथ लक्ष्य हासिल कर लेती है तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर न केवल विपक्षी राजनीतिक दलों के सामने बल्कि अपनी पार्टी में भी एक मजबूत नेता के रूप में कायम होंगे और इससे उन विरोधी दलों को भी जबाव मिलेगा जो उन्हें अनुभवहीन बताया करते थे। हालांकि श्री खट्टर के नेतृत्व में पार्टी के लोकसभा की सभी दस सीटों पर जीत करने से ऐसे दलों को करारा जबाव मिल चुका है लेकिन विपक्षी दल लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मुद्दे अलग अलग होने का हवाला देते हैं। ऐसे में विधानसभा चुनाव श्री खट्टर के लिये खुद की और भाजपा की लोकप्रियता को साबित करने की कसौटी भी हैं। मुख्यमंत्री अगर इसमें सफल रहते हैं तो राजनीति के माहिर होने के साथ विपक्ष के मुंह पर ताला लगाने में भी कामयाब होंगे।
वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में 17 सीटें जीतकर तीसरे स्थान पर रहने वाली कांग्रेस के मुकाबले यह चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए अहम है। हुड्डा और उनके पुत्र हाल ही के लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। डा. अशोक तंवर की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से छुट्टी कराने के बाद अब उनकी जगह कमान कुमारी सैलजा के पास आ चुकी है। वहीं श्री हुड्डा कांग्रेस विधायक दल के नेता बन गये हैं। सैलजा और हुड्डा के समक्ष अब यह चुनाैती है कि क्या वह पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार पार्टी की सीटेंं बढ़ा पाएंगे। दाेनों नेताओं को अब डा. तंवर की गैर मौजूदगी में खुद को जनता का नेता साबित करने बड़ी चुनौती है। दोंनो नेताओं के लिये पार्टी की स्थिति सुधारने की दृष्टि से भी यह चुनाव अहम है हालांकि प्रदेश कांग्रेस ने शुक्रवार को जारी अपने घोषणापत्र में सभी वर्गों के लिये लोकलुभावन वादे किये हैं लेकिन इसमें इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि वह इन वादों को पूरा करने के लिये भारी भरकम राजस्व कहां से जुटाएगी। अब देखना यह है कि पार्टी के इन वादों पर जनता कितना विश्वास करती है। कांग्रेस को पिछले चुनावों में 15 सीटें मिली थीं लेकिन बाद में हरियाणा जनहित कांग्रेस(हजकां) का इसमें विलय होने के बाद इसकी सीटों की संख्या बढ़ कर 17 हो गई थीं।
यह चुनाव पूर्व सांसद दुष्यंत चौटाला के लिए भी अहम है। इंडियन नेशनल लोकदल(इनेलो) से अलग होने के बाद दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी(जजपा) का गठन किया है। जजपा और इनेलो जींद उपचुनाव और लोकसभा चुनाव बुरी तरह हार चुके हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान जजपा को दलबदल का लाभ मिला है। जजपा अपने बल पर 90 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इस चुनाव में अगर जजपा की विधानसभा में एंट्री हो जाती है तो न केवल वह इनेलो के विकल्प बल्कि दुष्यंत चौटाला भी युवा नेता के रूप में स्थापित होंगे।
जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान भाजपा से अलग होकर लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी(लोसुपा) का गठन करने वाले पूर्व सांसद राजकुमार सैनी की प्रतिष्ठा भी इस चुनाव में दांव पर लगी हुई है। सैनी ने 77 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं जबकि अन्य सीटों पर अखिल भारतीय हिंदू महासभा तथा राष्ट्रवादी जनलोक पार्टी गठबंधन प्रत्याशियों का समर्थन कर रहे हैं। सैनी खुद गोहाना से चुनाव लड़ रहे हैं जबकि उनके भतीजे गुलशन सैनी अम्बाला जिले की नारायणगढ़ सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में सैनी अगर चुनाव जीतते हैं और उनके प्रत्याशी अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाते हैं तो उनकी पहचान दलितों और पिछड़ों के नेता के रूप में होगी। क्योंकि वह शुरू से ही दलितों और पिछड़ों की राजनीति कर रहे हैं।
यह चुनाव इनेलो के लिये भी अहम होगा जो गत लगभग डेढ दशक से सत्ता से बाहर है। ओम प्रकाश चौटाला और अजय चौटाला के जेल जाने के बाद अभय चौटाला ने पार्टी को खड़ा तो रखा लेकिन बिखराव को नहीं रोक पाए। यह चुनाव इनेलो से अधिक अभय चौटाला के लिए अहमियत रखता है। क्योंकि अभय चौटाला अगर खुद चुनाव जीतते हैं और उनकी पार्टी के विधायक विधानसभा पहुंच जाते हैं तो इनेलो हरियाणा की राजनीति में खड़ी रहेगी। अन्यथा इनेलो का भविष्य अंधकारमय होगा। पिछले चुनाव में इनेलो को 19 सीटों पर जीत दर्ज हुई थी और वह विधानसभा में भाजपा के बाद दूसरी बड़ी पार्टी बनी थी। भाजपा को गत चुनावों में 47 सीटें मिली थीं।
सं.रमेश1550वार्ता
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