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कृष्ण स्वरूप गोरखपुरिया नहीं रहे

कृष्ण स्वरूप गोरखपुरिया नहीं रहे

<p>हिसार, 23 अक्टूबर (वार्ता) लेखक और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता रहे कृष्ण स्वरूप गोरखपुरिया (73) का हिसार के एक निजी अस्पताल में कल रात निधन हो गया। <br /> श्री गोरखपुरिया के परिवार में दो बेटियां व दो बेटे हैं। चार दिन पहले उन्हें पक्षाघात हुआ था और उन्हें जिंदल अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। कल रात उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया। <br /> श्री गोरखपुरिया धर्म के नाम पर पाखंड के हमेशा विरोधी रहे। स्कूल, कॉलेज में वह छात्र संघ की राजनीति में सक्रिय हो गए। उन्होंने इस क्षेत्र में एसएफआई को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई। 1973 में जब वह हिसार जाट कॉलेज में एमए (अंग्रेजी) कर रहे थे तो कॉलेज से उनका नाम इसलिए काट दिया गया, क्योंकि उन्हेांने अध्यापकों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल को समर्थन का फैसला किया था। छात्र राजनीति के अनुभवों ने उन्हें वामपंथ की ओर मोड़ दिया। वह माकपा का परिचायक बन गए। उन्होंने माकपा के टिकट पर फतेहाबाद से 1998 में उपचुनाव और 2004 में आम चुनाव लड़ा। उन्हें भी पता था कि वह जीतने वाले नहीं थे मगर वह कहते थे कि सभी चुनाव जीत के लिए नहीं लड़े जाते। जनता तक विचार पहुंचाना है। वह वर्ष 2000 में जिला परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए। मगर 2008 में माकपा के साथ कुछ विवादों के कारण वह सक्रिय राजनीति से अलग हो गये। <br /> वह इतिहास में एमए करने लग गए। उम्र के इस पड़ाव में वह परीक्षाएं देकर सबको हैरत में डाल रहे थे। उनके दो बच्चों ने अंतरजातीय विवाह किए हैं। 1977 में जब गोरखपुर के जाटों ने वाल्मीकियों का बहिष्कार किया तो खुद जाट होते हुए भ उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। अगले वर्ष यानी 1978 में वाल्मीकियों और जाटों ने मिलकर श्री गोरखपुरिया को गोरखपुर का सरपंच चुना। उन्होंने 1857 के गदर सहित कई विषयों पर पुस्तक लिखी है। उनका एक बेटा टाइम्स ऑफ इंडिया में ब्यूरो चीफ है। श्री गोरखपुरिया के चुनाव विश्लेषण भी लगभग स्टीक रहते थे।<br /> सं महेश विजय<br /> वार्ता</p>

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