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हिमाचल में ‘स्नोपीज़‘ की खेती ला सकती है किसानों के चेहरे पर मुस्कान

शिमला, 16 नवम्बर (वार्ता) देश में लोगों के खानपान में हाल के कुछ वर्षों में आये बदलाव के कारण बागवानी क्षेत्र के प्रभावित हाेने के साथ परम्परागत सब्जियों और फलों के वजाय विदेशी सब्जियों की मांग बढ़ी है तथा ऐसी जरूरतों को पूरा करने के लिये वैज्ञानिक कृषि विविधीकरण की दिशा में भी लगातार प्रयास कर रहे हैं।
देश के महानगरों, शहरों और पर्यटन स्थलों में ज्यादातर खानपान की आदतों में बदलाव ज्यादा देखा गया है जहां होटलों, रेस्त्रां और यहां तक कि घर की रसोई में विदेशी सब्जियों का चलन बढ़ रहा है। राज्य के सोलन जिले में नौणी स्थित डा. वाई.एस. परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के शिमला स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने किसानों के साथ मिल कर ऐसी ही एक पहल की है जिसके काफी उत्साहवर्धक परिणाम सामने आये हैं। गत तीन वर्षों से केंद्र के वैज्ञानिकों ने जिले में विभिन्न विदेशी सब्जियों की खेती शुरू करने और इसे बढ़ावा देने की दिशा में कार्य किया है। विदेशी सब्जियां जैसे स्नोपीज़(सलाद के मटर), लेट्यूस, पोक चोई, केल, कौरगेटस, चेरी टमाटर और बीज रहित खीरे की खेती परीक्षण के तौर पर किसानों के खेतों में शुरू की गई है।
कृषि विज्ञान केंद्र के सब्जी वैज्ञानिक डॉ अशोक ठाकुर विदेशी सब्जियों की खेती के लिये उपयुक्त जगह और इन्हें उगाने के सीज़न का पता लगाने के लिये विभिन्न मौसमों में परीक्षण कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि केंद्र के कई विविधीकरण प्रयासों में से स्नोपीज़ की गैर मौसमी खेती का सफल और उत्साहवर्धक परिणाम रहे हैं। शिमला जिले की रोहड़ु तहसील अंतर्गत शील गांव के प्रगतिशील किसान राकेश दुल्टा ने अपने खतों में स्नोपीज़ की मीठी फली की विभिन्न किस्मों की खेती कर लगभग सात क्विंटल प्रति बीघा की उत्पादकता भी प्राप्त की। इसे दिल्ली स्थित आजाद पुर सब्जी मंडी में बेचने पर 200 से 300 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत मिली। इस प्रयाेग से उत्साहित श्री दुल्टा अन्य साथी किसानों को भी इस क्षेत्र में स्नोपीज़ और अन्य विदेशी सब्जियों की व्यावसायिक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
डा. ठाकुर के अनुसार स्नोपीज़ खाने योग्य मीठी फली है जो विभिन्न पोषक तत्वों से युक्त है। इसे सलाद के रूप में अत्यधिक पसंद किया जाता है। फली के भीतर लेयर न होने से इसे कच्चा और पका कर भी खाया जा सकता है। स्नोपीज़ विटामिन ए, बी6, सी, पोटाशियम, फोलेट और लाभकारी फाइबर का भी उत्तम स्रोत है। उन्होंने बताया कि विभिन्न विदेशी सब्जियां राज्य की मध्यम एवं ऊँची पहाड़ियों में उगाई जा सकती हैं और यह किसानों की आय बढ़ाने का एक बेहतरीन साधन बन सकता है। ये फसलें सेब और अन्य फलों की फसलों के साथ भी उगाई जा सकती हैं। केंद्र के प्रभारी डॉ एन. एस. कैथ के अनुसार सेब उगाने वाले क्षेत्रों का कम अवधि के उच्च मूल्य वाली नकदी फसलों के साथ विविधीकरण पहाड़ी राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए एक वरदान बन सकता है।
उधर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ परविंदर कौशल ने वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे प्रयासों कि सराहना करते हुए कहा कि राज्य में बागवानी के विविधीकरण के लिए निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। उन्होंने वैज्ञानिकों से अधिकाधिक किसानों को कृषि में ऐसी विविध रणनीतियां अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने का आग्रह किया जो न केवल एक फसल पर उनकी निर्भरता को कम करेगा बल्कि उनकी आय को बढ़ाने में भी मददगार साबित होगा।
सं.रमेश1535वार्ता
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