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ई-सिगरेट विधायक ‘दंतहीन‘ विधेयक, तंबाकू उद्योग को लाभ ही पहुंचायेगा : कार्यकर्ता

चंडीगढ़, 29 नवंबर (वार्ता) ई-सिगरेट समेत निकोटीन युक्त वस्तुओंं पर प्रतिबंध लगाने के लिए 12 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाले चंडीगढ़ के एक कार्यकर्ता ने केंद्र सरकार के राज्यसभा में कल ई-सिगरेटों पर पेश विधेयक को ‘दंतहीन‘ करार देते हुए कहा कि उद्योग के दबाव में कमजोर किया गया है और यह तंबाकू उद्योग को लाभ ही पहुंचायेगा।
तंबाकू के खिलाफ लड़ाई के लिए 2013 में विश्व स्वास्थ्य संगठन से पुरस्कार प्राप्त कार्यकर्ता हेमंत गोस्वामी ने आज यहां जारी बयान में कहा कि इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट प्रतिबंध विधेयक 2019 पूरी तरह ‘कमजोर किया गया विधेयक‘ है जो निकोटीन युक्त उत्पादों के गंभीर मुद्दे पर बात नहीं करता। उन्होंने कहा, ‘यह बेकार विधेयक है और इसका मोल उस कागज जितना भी नहीं जिस पर कि यह लिखा गया है। उन्होंने कहा कि यह आंशिक रूप से केवल ई-सिगरेट की बात करता है जो निकोटीन व्यसन क वास्तविक समस्या का एक फीसदी भी नहीं है। एक तरह से यह आगे जाकर तंबाकू उद्योग की मदद ही करने वाला है।
श्री गोस्वामी ने 2007 में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल कर सभी स्वरूपों में केमिकल निकोटीन को प्रतिबंधित करने की मांग की थी क्योंकि उनके अनुसार यह घातक जहर है और शीशा/हुक्का, ई-सिगरेट आदि समेत विभिन्न स्वरूपों में यह जनता के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। पांच साल बाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि निकोटीन और सभी निकोटीन डिलीवरी यंत्र विषैले हैं तथा सरकार को इसे रेगुलेट करना चाहिए। उसके बाद पंजाब, हरियाणा ओर चंडीगढ़ ने निकोटीन को विष अधिनियम 1919 के तहत विष की सूची में शामिल किया। उच्च न्यायालय ने राज्यों से निकोटीन के दुरुपयोग पर निगरानी के लिए एक स्थायी टास्क फोर्स बनाने को भी कहा।
उच्च न्यायालय के आदेश के बाद 2013 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक विशेषज्ञ समिति बनाई जिसमें श्री गोस्वामी के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारी भी सदस्यों के रूप में थे। 2017 में समिति के कानूनी समूह ने जनहित में एक पदार्थ या रसायन के रूप में निकोटन और इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी यंत्रों के आयात, निर्माण, वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध की सिफारिश की।
श्री गोस्वामी के अनुसार नये विधेयक में निकोटीन के पदार्थ या रसायन के रूप में इस्तेमाल पर प्रतिबंध की सिफारिश हटा दी गई।
श्री गोस्वामी ने कहा कि विधेयक तैयार करते समय निकोटीन डिलीवरी डिवाइस की परिभाषा को संकुचित कर दिया और निकोटीन के पदार्थ अथवा रसायन के रूप् में इस्तेमाल पर प्रतिबंध की बात उद्योग के दबाव में गोल कर दी।
उन्होंने कहा कि ई-सिगरेटों पर प्रतिबंध का यह कदम तंबाकू उत्पादकों और सिगरेट कंपनियों को फायदा ही पहुंचायेगा क्योंकि ई-सिगरेट से मिलने वाली चुनौती समाप्त हो जायेगी।
उन्होंने आरोप लगाया कि विधेयक इस नजरिये से भी दंतहन है कि इसके तहत कार्रवाई सीमित है और उल्लंघकर्ता के खिलाफ आपराधिक या कानूनी कार्रवाई शुरू करने के लिए पूर्वानुमति लेनी होगी। इसके तहत सजा एक साल की है। चूंकि अपराध प्रक्रिया संहिता के तहत वह अपराध असंज्ञेय माने जाते हैं जिनके तहत तीन साल से कम सजा का प्रावधान है इसका अर्थ है पुलिस सीधे अपराध का संज्ञान नहीं ले सकती। उन्होंने कहा कि सिगरेट एवं तंबाकू प्रतिबंध अधिनियम में भी यही कमी है।
महेश विक्रम
वार्ता
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