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कैप्टन अमरिंदर ने केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के इस कथन को कि सीएए भारतीय मुस्लिमों को किसी तरीके से प्रभावित नहीं करता, को पद की मजबूरी में अपनाया सार्वजनिक/राजनीतिक रुख करार दिया।
उन्होंने कहा कि मंत्री जानते ही हाेंगे कि सीएए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 की कसौटी पर खरा नहीं उतरता जो बिना धार्मिक भेदभाव के सभी लोगों को कानून के समक्ष समान मानता है और समान कानूनी बचाव देत है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि सीएए धार्मिक उत्पीड़न से बचाव के लिए है तो यह बचाव सभी देशों के सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों को दिया जाना चाहिए जहां भी लोगों को धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने युगांडा में ईदी अमीन शसन के दौरान हिंदुओं को निकाले जाने का उदाहरण दिया।
पंजाब की संवेदनशील सीमा का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने सीएए के संदर्भ मे चिंता जताई कि कानून की भाषा के अनुसार किसी अवैध प्रवासी का इस कानून का लाभ लेने के लिए किसी तरीके से भारतीय मूल का होना भी जरूरी नहीं है। उन्हें बस अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से होना चाहिये। यह कोइ नागरिक हो सकता है या निवासी या फिर इन देशों से अस्थायी रूप से आया कोई व्यक्ति।
पत्र में कैप्टन अमरिंदर ने लिखा है कि चूंकि सीएए के लिए किसी का भारतीय मूल का होना आवश्यक नहीं है या ऐसा मूल साबित करने की जरूरत नहीं है तो इसका मतलब हुआ कि छह धर्मों से कोई भी व्यक्ति संशोधित कानून के तहत आवेदन कर सकता है, अपने प्रवेश को कटऑफ तारीख से या उसे पूर्व साबित कर नागरिकता के योग्य बन सकता है। इसका वास्तव में देश में घुसपैंठ के लिए दुरुपयोग हो सकता है, खासकर सीमाई राज्यों में और देश की सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) पर सरकार में शामिल लोगों के विरोधाभासी बयान कोई भरोसा नहीं जताते और एनआरसी को जब सीएए के साथ देखा जाये तो यह बहुत (यदि सभी नहीं तो) भारतीय मुस्लिमों को नागरिकता अधिकारों से वंचित कर सकता है।
उन्होंने कहा कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए कानूनों को रातोंरात तहसनहस किये जाने की आशंका को लेकर देश के हर नागरिक की चिंता स्वाभाविक है।
महेश विक्रम
वार्ता
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