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धान की सीधी बिजाई से खेत में फसल घनत्व कम है तो घबराएं नहीं किसान: प्रो. समर

हिसार, 28 जुलाई (वार्ता) हरियाणा में यहां स्थित चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. समर सिंह ने कहा है कि धान की सीधी बिजाई करने पर किसानों को खेत में फसल घनत्व कम दिखाई दे रहा है तो उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है। जल्द ही खेत हरा भरा नजर आएगा।
प्रो. सिंह ने कहा कि पहली सिंचाई के बाद ही पौधों का ऊपरी भाग तेजी से बढ़ेगा और अगले 20 दिनों में खेत भरा-भरा नजर आएगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश में पहली बार काफी हिस्से में धान की सीधी बिजाई की गई है जो सरकार की 'मेरा पानी-मेरी विरासत‘ योजना को बढ़ावा देने में कारगर साबित हो रही है। उन्होंने कहा कि धान की सीधी बिजाई वाले खेत में शुरूआती दौर में खेत खाली दिखाई देता है जिससे किसानों के मन में शंका पैदा होती है कि उनकी फसल का घनत्व कम हो गया है और उत्पादन अच्छा नहीं मिल पाएगा। लेकिन पहली सिंचाई देर से देने पर पौधे पहले जड़ों को बढ़ाते हैं और उसके बाद ही ऊपरी भाग में धीरे-धीरे बढ़ौतरी होती है। सिंचाई के अगले 20 दिनों में ही खेत भरा-भरा नजर आने लगेगा। इसके अलावा धान की सीधी बिजाई वाले पौधों की जड़ें मृदा में काफी नीचे तक चली जाती हैं, जो गहराई से भी पानी ले लेती हैं और कई बार समय पर सिंचाई न हो पाने के कारण भी पौधे मरते नहीं।
उन्होंने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि अगर सीधी बिजाई वाली फसल रोपाई वाली फसल से पीली दिखाई दे, तो इसके समाधान के लिए 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट(21 प्रतिशत) या 6.5 किलोग्राम यूरिया की पहली विभाजित दर (33 प्रतिशत्) प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालें। खाद हमेशा सिंचाई के बाद नमी वाले खेत में ही डालें और यूरिया की पहली किश्त बिजाई के 28 दिन बाद डाल सकते हैं। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि मृदा जांच कराकर ही फसल में जरूरत अनुसार पोषक तत्व डालें ताकि फसल पर खर्च कम और उत्पादन भी अच्छा मिले।
विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. सतबीर सिंह पूनिया ने बताया कि अगर फसल के नए पत्ते पीले पड़ रहे हों तो एक किलोग्राम फेरस सल्फेट का 100 लीटर पानी में घोल बनाकर खेत में डालें, अगर फिर भी समस्या का समाधान न हो तो पौधे को जड़ से उखाड़कर फेंक दें या नष्ट कर दें। उन्होंने कहा कि अगर फसल की बिजाई के समय खेत में अच्छी नमी हो तो पहली सिंचाई की काफी दिनों बाद दी जा सकती है। सीधी बिजाई वाली फसल में रोपाई वाली फसल की तुलना में पानी की काफी बचत होती है और देरी से सिंचाई करने पर भी पौधे मरते नहीं। इसके अलावा नाइट्रोजन का नुकसान भी नहीं होता। नमी वाले खेत में पहली सिंचाई 20 से 21 दिन बाद दे सकते हैं। रेतीली जमीन में पानी जल्दी देना पड़ता है, नहीं तो पौधे मर जाते हैं। उन्होंने बताया कि खेत में रोपाई वाली फसल की तरह जल स्तर रखने की आवश्यकता नहीं होती। साथ ही फसल को सुखा भी नहीं रखना चाहिए। अधिक सिंचाई से खरपतवार की समस्या पैदा हो सकती है और पौधे को आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल पाते।
डा. पूनिया ने बताया कि सिंचाई के 30 दिन बाद ही खेत में खरपतवार जैसे सांवक, मकड़ा, सांठी, कोंधरा, चौलाई, काचर बेल, कनकुआ, नूनिया, हुलहुल, तकड़ी घास, डीला और पानी घास इत्यादि उग आते हैं। धान की सीधी बिजाई में खरपतवारों द्वारा नुकसान ही उत्पादन् में कमी का मुख्य कारण है। इनके छोटा होने के कारण किसान इनकी पहचान नहीं कर पाते और बड़े होने पर खरपतवारनाशियों द्वारा इनका नियंत्रण नहीं हो पाता। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि बिजाई के तुरंत बाद एक लीटर पेंडी मैथलीन प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करने पर खेत शुरू में खरपतवार रहित बना रहता है। बाद में समस्या आती है तो उन पर खरपतवारनाशकों का प्रयोग कर नियंत्रण पा सकते हैं। ध्यान रहे कि स्प्रे छोटी अवस्था में ही करना चाहिए नहीं तो खरपतवारों को नष्ट करना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने कहा कि किसान खरपतवारनाशकों का प्रयोग फसल केे 25 दिन की होने के बाद ही लैट फैन वाली नोजल से करें नहीं तो फसल को नुक्सान हो सकता है। इसके अलावा अगर खेत में एक से ज्यादा खरपतवारनाशकों का प्रयोग करना हो तो उनके बीच में एक सप्ताह का अंतराल अवश्य रखें और कभी भी दो दवाइयों को एक साथ मिलाकर प्रयोग न करें।
सं.रमेश1707वार्ता
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