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बीज आलू उत्पादन के लिए हरी खाद बेहतर बिकल्प

जालंधर 04 सितंबर (वार्ता) बीज आलू और अन्य फसलों की बुवाई से पहले मिट्टी की स्थिति में सुधार करने के लिए हरी खाद को उर्वरकों के बेहतर बिकल्प के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है।
हरी खाद ढैंचा (सेसबानिया) और सनहेमप (क्रोटोलारिया जंसिया) की फसलों से तैयार की जाती हैं। इन दोनों फसलों को मिट्टी में मिला कर हरी खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जो कि नाइट्रोजन निर्धारण में सहायता करता है। नाइट्रोजन स्थिरीकरण का अर्थ है, एक प्रक्रिया जिसमें वायुमंडलीय नाइट्रोजन इन हरी खाद के पौधों की जड़ों पर मौजूद नोड्यूल में तय की जाती है। इस प्रक्रिया से नोड्यूल में मौजूद बैक्टीरिया (एज़ोटोबैक्टर आदि) अमोनिया और अन्य नाइट्रोजन यौगिकों के रूप में मिट्टी में नाइट्रोजन को ठीक करते हैं। इस तरह के हरी खादों के उपयोग से यूरिया, डि-अमोनियम फॉस्फेट आदि उर्वरकों की आपूर्ति करने वाली नाइट्रोजन की आवश्यकता कम हो जाती है। ये सिफारिशें कृषि विशेषज्ञों द्वारा दी जा रही हैं।
विकास से विभिन्न फसलों की पोषण पूर्ति के लिए कई अकार्बनिक उर्वरकों की उपलब्धता हुई है लेकिन, फार्म यार्ड खाद और हरी खाद की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, जिसका उपयोग इन दिनों उच्च फसल की तीव्रता के कारण बहुत कम हो गया है। ये जैविक खाद न केवल फसल को पोषण प्रदान करते हैं, बल्कि बेहतर फसल विकास के लिए मिट्टी के स्वास्थ्य और बनावट में सुधार करते हैं।
जालंधर के धोगड़ी स्थित सेंटर आफ एक्सीलेंस फार पोटेटो के परियोजना अधिकारी डॉ दमनदीप सिंह ने आज बताया कि पंजाब में गुणवत्तापूर्ण आलू बीज उत्पादन के लिए प्रभावी रूप से हरी खाद का उपयोग किया जा सकता है। आलू की फसल के लिए आलू बुवाई से पहले प्रति एकड़ 20 टन खेत यार्ड खाद या हरी खाद को शामिल करने की अनुमति देती है। उन्होंने बताया कि हरे रंग की खाद की यह मात्रा जून और जुलाई के अंत में 20 किलोग्राम ढैंचा बीज प्रति एकड़ की बुवाई के द्वारा प्राप्त की जा सकती है। ढैंचा की बुवाई के सात से आठ सप्ताह के बाद खड़ी फसल को खेत में ही दफन कर दिया जाता है, जिससे आलू के रोपण के मौसम से पहले यह पौधे सड़ कर खाद का रूप धारण कर सकती है। इसके अलावा, 75 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फास्फोरस और 25 किलोग्राम पोटेशियम पोषक तत्वों की आवश्यकता को अन्य उर्वरकों जैसे यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट, म्यूरिएट ऑफ पोटाश आदि द्वारा पूरा किया जाना चाहिए। अगर किसी ने हरी खाद का उपयोग नहीं किया है उसे मृदा परीक्षण के परिणामों के आधार पर अधिक उर्वरकों को लागू करने की आवश्यकता होती है जो उत्पादन की लागत को बढ़ाते हैं और भूजल की गुणवत्ता को खराब कर सकते हैं।
डॉ दमनदीप सिंह ने बताया कि राज्य में आलू अधीन कुल रकबे में सबसे ज्यादा पैदावार कुफरी पुखराज किस्म की होती है जो लगभग 50 से 60 प्रतिशत रकबे में बोया जाता है। इसके पश्चात कुफरी ज्योती किस्म लगभग 14 से 16 फीसदी रकबा, बादशाह तथा चिपसोना तीन फीसदी, चंदरमुखी छह फीसदी तथा अन्य लगभग चार फीसदी रकबे में बोया जाता है। उन्होने कहा कि आलू की फसल की बुवाई से पूर्व के खाली समय दौरान किसानों को चाहिए कि अपने खेतों में ढैंचा की फसल लगाई जाएं ताकि इसका प्रयोग हरी खाद के तौर पर किया जा सके।
पंजाब आलू उत्पादन का सबसे बड़ा राज्य है। राज्य में सबसे ज्यादा आलू जालंधर में बीजा जाता है जबकि सबसे कम आलू पठानकोट में 14 हेक्टेयर में बीजा जाता है। जालंधर में 22176 हैक्टेयर में आलू की फसल ली जाती है, जबकि अन्य जिलों में आलू अधीन होशियारपुर में 15810 हैक्टेयर, लुधियाना में 13228, कपूरथला में 9766, अमृतसर 9910, मोगा 7725, बठिंडा 5876, फतेहगढ़ साहिब 4430, पटियाला 4716, एसबीएस नगर 2650, तरनतारन 1890, बरनाला 1570, एसएएस नगर 1520, रोपड़ 1026, गुरदासपुर 826, संगरूर 781, फिरोजपुर 1306, फरीदकोट 266, मुक्तसर 214, मानसा 218 और फाजिलका 148 हैक्टेयर है।
ठाकुर.श्रवण
वार्ता
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