Saturday, Apr 20 2024 | Time 15:58 Hrs(IST)
image
राज्य » पंजाब / हरियाणा / हिमाचल


विल्डर के ऋण न चुकाने पर भी अलॉटी के अधिकारों पर असर नहीं : हरेरा

चंडीगढ़, 18 सितम्बर(वार्ता) हरियाणा भू सम्पत्ति नियामक प्राधिकरण (हरेरा), गुरुग्राम ने हाउसिंग प्रोजेक्ट के आबंटियों के हितों की रक्षार्थ एक मामले में एक अभूतपूर्व फैसला सुनाया गया है जिससे बिल्डर द्वारा वित्तीय संस्था का ऋण न चुकाने की स्थिति में तथा प्रोजेक्ट के टेक ओवर करने पर भी आबंटी के अधिकारों पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ेगा।
हरेरा, गुरुग्राम के अध्यक्ष डॉ. के.के. खण्डेलवाल ने आज यह जानकारी देते हुए बताया कि रियल एस्टेट मार्किट में यह प्रचलन है कि बिल्डर जब किसी भी वित्तीय संस्थान से ऋण लेता है तो वह अपने प्रोजेक्ट की जमीन और इसमें बनने वाले यूनिट्स(इकाईयों) को वित्तीय संस्थान के पास गिरवी रख देता है और जो पैसा बुकिंग कराने वाले ग्राहकों से किश्तों के रुप में जिस खाते में आता है वह भी गिरवी रख दिया जाता है। जब कभी भी बिल्डर ऋण चुकाने में डिफाल्ट करता है तो वित्तीय संस्थान के पास सम्पत्ति गिरवी होने के कारण वह प्रोजेक्ट को टेकओवर कर लेता है।
उन्होंने कहा कि वित्तीय संस्थान द्वारा प्रोजेक्ट के टेक ओवर करने के कारण आबंटी एक अनिश्चितता की स्थिति में आ जाते हैं और उनके अधिकारों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उन्हें यह भी नहीं मालूम होता कि बुकिंग कराई गई यूनिट उन्हें कब मिलेगी, मिलेगी या नहीं मिलेगी। बिल्डर के खाते में उनके द्वारा जो पैसे जमा कराये गये हैं, उनका क्या होगा और बैंक जब इस प्रोजेक्ट की नीलामी करेगा तो जो भी इस प्रोजेक्ट का खरीददार होगा क्या वह उन्हें जो युनिट बुक कराई गई है उस यूनिट को देने के लिये जिम्मेवार होगा या उसका जो पैसा उसका प्रोजेक्ट में जमा है उसे वापिस करने के लिये उत्तरदायी होगा। इससे आबंटियों में अनिश्चिता की स्थिति बनी रहती है। वे इस प्रोजेक्ट में अपनी मेहनत की कमाई लगा चुके होते हैं और उन्हें यह मालूम नहीं होता है कि अब प्रोजेक्ट का क्या होगा।
डा. खंडेलवाल ने कहा कि चूंकि प्रोजेक्ट में युनिट के लिये जो पैसा अलॉटी ने लगाया है उसके लिये बिल्डर और खरीददार में जो समझौता होता है वह आबंटी और प्रोमोटर के बीच में था। वित्तीय संस्थान जिसने प्रोमोटर को ऋण दिया है उनका आबंटी से कोई सीधा सम्बंध नहीं है। वित्तीय संस्थान प्रोजेक्ट को इसलिये टेकओवर करता है क्योंकि उसने अपने पैसे की वसूली करनी होती है। लेकिन सरफैसरी अधिनियम 2002 में यह प्रावधान है कि यदि वित्तीय संस्थान इस अधिनियम के तहत प्रोजेक्ट को नीलाम करता है तो वह सभी देनदारियों को स्पष्ट करेगा ताकि तीसरे पक्ष को यह मालूम होना चाहिये कि उनकी क्या देनदारियां थी। उन्हें यह मालूम होना चाहिये कि वह उन्हें पूरा करने के लिये जिम्मेवार है।
उन्होंने कहा कि हरेरा ने तय किया है कि यदि वित्तीय संस्थान डिफाल्ट की स्थिति में प्रोजेक्ट टेकओवर करते हैं तो वे प्रमोटर के स्थान पर आ जायेंगे और वे प्रोमोटर कहलाएंगे। ऐसी स्थिति में वित्तीय संस्थानों के जो ऋण हैं, जो देनदारियां हैं, वह अलॉटी के हित उनके अधीन नहीं हो सकते हैं। बिल्डर-बायर एग्रीमेंट होने के बाद कोई भी सम्पत्ति गिरवी नहीं रखी जा सकती है। यदि गिरवी किया गया है तो आबंटी के अधिकार सुरक्षित रहेंगे। इस निर्णय से पहली बार यह निर्धारित किया गया है वित्तीय संस्थान, जिनके पास सम्पत्ति गिरवी है और जिसने इसे टेकओवर किया है वह प्रमोटर की परिभाषा में आयेंगे और उसकी उन देनदारियों की जिम्मेदारी बनी रहेगी, जो जिम्मेदारी मूल प्रोमेटर की थी। यदि वे सम्पत्ति को नीलाम करना चाहता हैं तो सभी परिसम्पत्तियों को घोषित कर प्राधिकरण से अनुमति लेंगे और उसके बाद ही नीलामी कर सकते हैं। वित्तीय संस्थान यह सुनिश्चित करेंगे कि जो 70 प्रतिशत प्राप्ति है वो हरेरा के खाते में जाये।
उन्होंने कहा कि यदि यह पाया गया कि कोई वित्तीय संस्थान प्राधिकरण के अनुमोदन के बिना परियोजना को नीलाम करने में शामिल है तो इसे गम्भीरता से लिया जायेगा तथा उस देनदार प्रोमोटर और वित्तीय संस्थान/व्यक्तियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई शुरू की जायेगी और इस तरह की कार्रवाई की अनुमति पूर्ण रूप से आवंटियों द्वारा निवेश किये गये अपने धन की रक्षा के लिये होगी जो बिल्डरों और वित्तीय संस्थानों एवं समकक्षों के समान शक्तिशाली और संसाधन सम्पन्न नहीं हैं।
रमेश1912वार्ता
image