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कृषि अवशेष जलाने के बजाय किसान इसे खुम्ब उत्पादन में करें इस्तेमाल: डा. सहरावत

हिसार, छह अक्टूबर (वार्ता) किसान फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन करते हुए इन्हें जलाने के बजाय इनका इस्तेमाल मशरूम(खुम्ब) उत्पादन के लिए कम्पोस्ट बनाने में करें जिससे न केवल उनकी आमदनी में वृद्धि होगी बल्कि वातावरण भी दूषित नहीं होगा।
ये विचार यहां स्थित चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने पौध रोग विभाग द्वारा मशरूम उत्पादन तकनीक विषय पर आयोजित तीन दिवसीय ऑनलाइन व्यावसायिक प्रशिक्षण शिविर के उद्घाटन सम्बोधन में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि पराली न जलाने के लिए इसे एक सामाजिक अभियान के रूप में ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े सभी वर्गों को इसमें योगदान देना होगा। उनके अनुसार किसान मशरूम को मूल्य संवर्धित उत्पाद जैसे अचार, चटनी पाउडर, पापड़, बिस्किट आदि तैयार कर बेच सकते हैं।
डा. सहरावत के अनुसार विश्वविद्यालय ने किसानों की सुविधा के लिए बाजवा मशरूम फार्म कुरूक्षेत्र से इस आशय के एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किये हैं जिसके तहत किसान इस सम्बंध में अधिकाधिक लाभ उठा सकते हैं। महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय करनाल के कुलसचिव डॉ. अजय यादव ने इस दौरान अपने सम्बोधन में कहा कि हरियाणा मशरूम उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर आ गया है। वर्तमान में प्रदेश में 20 हजार टन से भी अधिक सफेद बटन मशरूम का उत्पादन हो रहा है। इसके अलावा यहां की जलवायु ढींगरी खुम्ब, दूधिया खुम्ब, शिटाके खुम्ब और धान की पुआल की खुम्ब के लिए अनुकूल है। उन्होंने किसानों से खुम्ब को व्यावसाय के रूप में स्थापित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि किसान मशरूम उत्पादन के बाद बची हुई खाद को खेतों तथा बागों में इस्तेमाल कर सकते हैं।
सं.रमेश1315वार्ता
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