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इन-सीटू अवशेष प्रबंधन तकनीक से किसान अब धान वाले खेत में कर सकेंगे आलू की बिजाई

हिसार, 06 नवम्बर (वार्ता) चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने धान की पराली के प्रबंधन का इन-सीटू अवशेष प्रबंधन तकनीक से हल निकाला है जिसके प्रयोग से अब पराली को बिना जलाए व खेत के अंदर ही प्रयोग कर आलू की बिजाई की जा सकेगी।
इस पराली प्रबंधन तकनीक को हाल ही में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान प्रोजेक्ट (आलू) की वार्षिक वर्कशॉप में स्वीकृति मिल चुकी है। यह वर्कशॉप केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला के निदेशक डॉ. मनोज कुमार की अध्यक्षता में शिमला में आयोजित हुई थी। इस तकनीक को उन क्षेत्रों के लिए सिफारिश किया गया है जहां किसान धान की फसल के बाद आलू की बिजाई करते हैं।
पराली प्रबंधन की इन-सीटू अवशेष प्रबंधन तकनीक पर कृषि महाविद्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. अरूण कुमार भाटिया के नेतृत्व मेें डॉ. विजय पाल पंघाल, डॉ. लीला बोरा व क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान उचानी(करनाल) से डॉ. धर्मबीर यादव के सहयोग से अनुसंधान किया गया। इस तकनीक के लिए लगातार दो वर्ष तक उचानी में ट्रायल लगाए गए और उसके बाद सकारात्मक परिणाम आने के बाद किसानों के लिए सिफारिश किया गया।
अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने बताया कि पराली की कटाई की समस्या व फसल अवशेषों के पारंपरिक उपयोग की कमी के कारण आज किसान समस्याओं का सामना कर रहा। अक्तूबर माह में ही धान की कटाई होती है और इसी माह में आलू की बिजाई की जाती है। ऐसे में धान के खेत को तुरंत खाली कर किसान उसमें आलू की खेती करते हैं, जिसके लिए उन्हें खेत को खाली करना पड़ता है। इसी के चलते ऐसी तकनीक विकसित करना जरूरी था जिससेकिसानों को इस समस्या से निजात मिल सके।
पराली प्रबंधन की इस इन-सीटू अवशेष प्रबंधन तकनीक को अपनाकर किसान एक ओर जहां फसल विविधिकरण को अपना सकेंगे तो दूसरी ओर भूमि की उर्वरा शक्ति भी कायम रहेगी। फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण प्रदुषण के साथ-साथ भूमि व जन-जीवन के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। ऐसे में किसान आलू लगाकर फसल चक्र अपनाते हुए भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखेंगे और जमीन भी अगली फसल की बिजाई तक खाली नहीं रखनी पड़ेगी।
धान की फसल की कटाई के बाद और आलू बोने से पहले धान की फसल के अवशेषों को अच्छी तरह से टैक्टर चालित पैडी स्ट्रा चॉपर एवं सह स्प्रेडर के साथ खेत में फैला देना चाहिए। फिर 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर के छिडक़ाव के बाद 500 लीटर प्रति हेक्टेयर डीकंपोजर और 500 लीटर प्रति हेक्टेयर गोबर घोल का छिडक़ाव करें। इसके बाद डिस्क हैरो और रोटावेटर की सहायता से जुताई करते हुए पूरे खेत में मिला देना चाहिए। साथ ही विश्वविद्यालय की समग्र सिफारिशों का प्रयोग करते हुए आलू की बिजाई करनी चाहिए और अन्य आवश्यक पैकेजों का पालन करना चाहिए।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने बताया कि यह अवशेष प्रबंधन तकनीक उन क्षेत्रों के किसानों के लिए अधिक कारगर साबित हो सकती है जहां किसान धान की फसल के तुरंत बाद आलू की बिजाई करते हैं। इससे फसल चक्र को भी मदद मिलेगी और भूमि की उर्वरा शक्ति भी कायम रहेेगी। साथ ही पर्यावरण प्रदूषण से भी निजात मिलेगी। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का पराली प्रबंधन को लेकर यह प्रयास काफी सराहनीय है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा इस प्रकार के अनुसंधान करने के लिए उनको बधाई दी है।
सं शर्मा
वार्ता
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