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बिजली निजीकरण के टेंडर वापस लिए जाएं: एआईपीईएफ

जालंधर 23 नवंबर (वार्ता) ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने सोमवार को चंडीगढ़ इलेक्ट्रिसिटी विंग के निजीकरण के लिए टेंडर नोटिस वापस लिए जाने की मांग की है।
एआईपीईएफ के मुख्य संरक्षक पदमजीत सिंह ने चंडीगढ़ प्रशासक को लिखे पत्र में कहा है कि यह प्रणाली पहले से ही कुशलतापूर्वक काम कर रही है और इष्टतम उपभोक्ता सेवा प्रदान करने के लिए लाभ में है। उन्होंने कहा कि सिर्फ कॉर्पोरेट्स को अतिरिक्त मुनाफा देने के लिए एक जरूरी सेवा का निजीकरण जनहित में नहीं है और यह स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि संयुक्त विद्युत नियामक आयोग (जेईआरसी) के वर्ष 2020-21 के टैरिफ आदेश के अनुसार विभाग ने 2019-2020 में 155.42 करोड़ का लाभ कमाया है और इस वर्ष इसके 84.12 करोड़ रुपये होने की उम्मीद है।
एआईपीईएफ के प्रवक्ता वी के गुप्ता ने कहा कि बिजली (संशोधन) विधेयक 2020 के मसौदे में केंद्र शासित प्रदेशों के बिजली वितरण के निजीकरण का कोई प्रस्ताव नहीं था लेकिन पांच जून को वित्त मंत्री ने अचानक देश के सभी केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली के निजीकरण के संबंध में घोषणा कर दी। केन्द्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ के मामले में निजीकरण का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि इसमें कम घाटा, कम टैरिफ और अच्छी उपभोक्ता सेवा है जबकि अगर निजीकरण को अपनाया जाता है तो टैरिफ में निश्चित वृद्धि होगी, उपभोक्ता असंतोष और सरकारी खजाने पर बोझ पड़ेगा । व्यापक टिप्पणी की गई है कि भारत सरकार निजीकरण नीति को केवल कॉर्पोरेट और बड़े व्यापारिक घरानों को भारी वित्तीय लाभ देने के लिए अपना रही है।
पत्र में उल्लेख किया गया है कि चंडीगढ़ बिजली विभाग का कारोबार स्पष्ट रूप से जारी लाभ पर चल रहा है और निजीकरण का कोई औचित्य नहीं है। निजीकरण से एक ओर तो निगम पार्टी की जेब में भारी मुनाफा होगा, जबकि उपभोक्ताओं पर बिजली की अधिक दरों का टैरिफ का झटका लगेगा। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित बिजली कर्मी होंगे। कर्मचारी केंद्र सरकार की कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के शिकार हो जाएंगे। दिल्ली/ डेसू निजीकरण के मामले में निजी कंपनियों ने कर्मचारियों की पेंशन देयता को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया जिससे अंतहीन कठिनाई और पीड़ा हुई।
ठाकुर, उप्रेती
वार्ता
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