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सरसों की बिमारियों की समय से पहचान/रोकथाम से अधिक पैदावार ले सकते हैं किसान

सरसों की बिमारियों की समय से पहचान/रोकथाम से अधिक पैदावार ले सकते हैं किसान

हिसार, दो जनवरी (वार्ता) सरसों वर्गीय फसलें रबी के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है जिसमें तोरिया, राया, तारामीरा, भूरी और पीली सरसों आती हैं।

हरियाणा में सरसों मुख्य रूप से रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, हिसार, सिरसा, भिवानी और मेवात जिलों में बोई जाती है। किसान सरसों उगाकर कम खर्च में अधिक लाभ कमा रहे हैं। किसान सरसों की बिमारी की समय रहते पहचान कर उनका आसानी से रोकथाम कर सकते हैं। यह सलाह चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में तिलहन विभाग के वैज्ञानिक डॉ. राम अवतार और उनकी टीम ने दी है। उन्होंने यह सलाह इस समय फसल पर आने वाली बिमारियों को ध्यान में रखते हुए दी है। उनके अनुसार अगेती और पछेती सरसों की फसल में कई प्रकार की बिमारियों का प्रकोप हो सकता है जिनकी किसान समय से पहचान कर रोकथाम कर फसल से अधिक पैदावार हासिल कर सकते हैं।

उन्होंने बताया कि किसान फसल की बिमारियों की रोकथाम के लिए किए जाने वाले छिड़काव सदैव सायंकाल को तीन बजे के बाद करें ताकि मधुमक्खियों को कोई नुकसान न हो जो उपज बढ़ाने में सहायक होती हैं। तिलहन विभाग के सहायक वैज्ञानिक डॉ. राकेश पूनियां (पादप रोग विशेषज्ञ) के अनुसार सरसों की फसल में कई बिमारियों का प्रकोप होने का खतरा रहता है जिसके चलते इसकी पैदावार में कमी आ जाती है। इसलिए किसानों को फसल की अच्छी उपज हासिल करने के लिए इन बिमारियों को समय से पहचानना बहुत जरूरी है। सरसों की फसल की मुख्य बिमारियों की पहचान कर उनकी रोकथाम के लिए किसान विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश किए गए फफूंदनाशकों ही प्रयोग करें ताकि बिमारी का सही समय पर उचित प्रबंध हो सके।

अल्टरनेरिया ब्लाइट सरसों फसल की मुख्य बिमारी है। इसमें पौधे के पत्तों और फलियों पर गोल और भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। कुछ दिन बाद इन धब्बों का रंग काला हो जाता है और पत्ते पर गोल छल्ले दिखाई देने लगते हैं। फुलिया या डाउनी मिल्डू बिमारी में पत्तियों की निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और धब्बों का ऊपरी भाग पीला पड़ जाता है और इन धब्बों पर चूर्ण सा बन जाता हैं। सफेद रतुआ में सरसों की पत्तियों पर सफेद और क्रीम रंग के छोटे धब्बे से प्रकट होते हैं। इससे तने और फूल बेढंग आकार के हो जाते हैं जिसे स्टैग हैड कहते हैं। यह बिमारी पछेती फसल में अधिक होती है। तनागलन रोग में तनों पर लम्बे आकार के भूरे जल शक्ति धब्बे बनते हैं जिन पर बाद में सफेद फफूंद की तरह बन जाती है। ये लक्षण पत्तियों और टहनियों पर भी नजर आ सकते हैं तथा फूल आनेे या फलियां बनने पर इस रोग का अधिक आक्रमण दिखाई देता है जिससे तने टूट जाते हैं और तनों के भीतर काले रंग के पिंड बनते हैं।

सहायक वैज्ञानिक और पादप रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश पूनियां के अनुसार सरसों की अल्टरनेरिया ब्लाइट, फुलिया और सफेद रतुआ बिमारी के लक्षण नजर आते ही 600 ग्राम मैंकोजेब (डाइथेन या इंडोफिल एम 45) को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतर पर तीन-चार बार छिड़काव करें। इसी प्रकार तना गलन रोग के लिए दो ग्राम कार्बेन्डाजिम(बाविस्टिन) प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करें। जिन क्षेत्रों में तना गलन रोग का प्रकोप हर साल होता है वहां बिजाई के 45 से 50 दिन तथा 65 से 70 दिन के बाद कार्बेन्डाजिम का 0.1 प्रतिशत की दर से दो बार छिड़काव करें।

सं.रमेश1840वार्ता


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