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तनाव रोकने में सहायक बोनसाई कला

लोकरूचि तनाव बोनसाई
हिसार, 08 अप्रैल (वार्ता) बोनसाई पेड़ कोरोना महामारी के बीच बढ़ते तनाव को कम करने का सबसे उत्तम साधन बन सकते हैं।
बोनसाई पेड़ न सिर्फ घर में सौंदर्यबौद्ध करवाते हैं बल्कि ये किसी भी प्रकार का तनाव कम कर सकते हैं। बोनसाई पेड़ बनाने की प्रक्रिया में तनाव से घिरा हुआ व्यक्ति सुकून प्राप्त कर सकता है। ये बात हिसार में पिछले 40 साल से काम करके सबसे अधिक बोनसाई पेड़ तैयार करने वाले व बोनसाई कला में पत्थरों को शामिल करके पत्थरों के बीच बोनसाई पेड़ तैयार करने वाले बोनसाई आर्टिस्ट डा. विवेक कुमार ने कही।
उन्होंने आज यहां पत्रकारों को बताया कि हिसार वासियों को बोनसाई पेड़ों व अन्य दुर्लभ पौधों की सैकड़ों प्रजातियों से अवगत करवाने, बोनसाई तकनीक की जानकारी देने और बोनसाई पेड़ खरीदने का मौका देने के लिए तीन दिवसीय प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। ये बोनसाई प्रदर्शनी साउथ बाइपास रोड टी प्वाइंट पर सातरोड गांव के पास फ्लोरा नर्सरी में आयोजित की जा रही है। यहां बोनसाई एक से एक दुर्लभ प्रजाति देखने को मिलेगी। इस प्रदर्शनी में तीन लाख रुपये तक के बोनसाई पेड़ देखने को मिलेंगे।
डा. विवेक ने बताया कि बोनसाई पेड़ का मतलब होता है बौना पेड़। किसी भी बड़े पेड़ की रेप्लिका। बरगद जैसा बड़ा पेड़ यदि किसी भी घर के ड्राइंग रूम में लगा हो तो सबको हैरानी होगी। तीन चार मंजिला इमारत जितना ये पेड़ एक से दो फुट की ऊंचाई पर बोनसाई के रूप में उगाया जा सकता है। इस तकनीक को जापान या चीन से शुरू हुई कला व तकनीक कहा जाता है लेकिन ये भारत में शुरू हुई थी। चीन व जापान से आने वाले लोगों ने भारत से ही इसे सीखा था। आज इस तकनीक व कला के चाहने वालों की संख्या काफी बढ़ रही है। कोरोना महामारी के दौरान लोगों का पौधों के प्रति रुझान बहुत बढ़ा है।
किचन गार्डन व रूफ टॉप गार्डन की संख्या में वृद्धि हुई है। लॉकडाउन के वक्त में बोनसाई कला सीखने वाले बढ़े हैं। हिसार में वो एक हजार से अधिक लोगोंं को बोनसाई पेड़ बनाने की कला सीख चुके हैं। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में पढऩे वाले और वहीं से नौकरी छोड़कर पौधों को अपना जीवन बनाने वाले डा. विवेक ने बताया कि वो बचपन से ही पौधों से जुड़ाव महसूस करते थे। उन्हें पौधे उगाना और उनकी देखभाल करना काफी पसंद था। इसीलिए उन्होंने नौकरी छोड़कर पौधों की दुनिया को अपना लिया।
उन्होंने बताया कि बोनसाई कला को सीख कर लोग इस आजीविका के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। आजकल घरों में बोनसाई पेड़ों को रखने का चलन बढ़ा है। इस मौके पर समाजिक कार्यकर्ता राकेश अग्रवाल ने बताया कि पौधों के साथ जुड़कर प्रकृति के साथ जुड़ाव होता है और ये एक तनाव भरे जीवन में मानसिक राहत पाने का बहुत बढिय़ा साधन है। आजकल बहुत से ऐसे लोग जो अपने कामकाजी जीवन में खुद के लिए कम समय निकाल पाते हैं, वो भी पेड़-पौधों के बीच समय बिताने लगे हैं। कोरोना महामारी के बीच पेड़-पौधों से लोगों का काफी जुड़ाव हुआ है। 9 अप्रैल से 11 अप्रैल तक होने वाली बोनसाई व अन्य पौधा प्रदर्शनी में हिसार की जनता को जरूर पहुंचना चाहिए ताकि वो प्रकृति के साथ नये सिरे से जुड़ सकें।
सं शर्मा
वार्ता
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