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कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा कायम एवं भाजपा के लिए प्रतिष्ठा बरकरार रखने की होगी चुनौती

जयपुर 17 मार्च (वार्ता) राजस्थान में कांग्रेस का गढ़ रहे एवं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राजनीतिक दबदबे वाले मारवाड़ अंचल में आगामी सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के लिए जहां फिर से राजनीतिक प्रतिष्ठा कायम करने तथा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए राजनीतक प्रभुत्व को बरकरार रखने की चुनौती रहेगी।
लोकसभा के पहले चुनाव से लेकर वर्ष 2014 के सोलहवीं लोकसभा के चुनाव तक मारवाड़ अंचल में आने वाले जोधपुर, नागौर, पाली, बाड़मेर-जैसलमेर तथा जालौर संसदीय क्षेत्र में श्री गहलोत के अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री नाथूराम मिर्धा, पूर्व केन्द्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह तथा सांसद कर्नल सोनाराम का भी दबदबा रहा है। इनमें श्री मिर्धा ने सर्वाधिक छह बार चुनाव जीता।
श्री गहलोत अपने गृह जिले जोधपुर संसदीय क्षेत्र से वर्ष 1980 में कांग्रेस (आई) के उम्मीवार के रुप में चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने। इसके बाद उन्होंने इसके अगले आठवीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में जीता और अपना राजनीतिक दबदबा कायम किया। इसके बाद वर्ष 1991, 1996 एवं 1998 के लोकसभा चुनावों में लगातार जीत दर्ज की। इस दौरान वह केन्द्र सरकार में मंत्री भी बनाये गये।
श्री गहलोत का जोधपुर ही नहीं पूरे मारवाड़ अंचल में राजनीतक दबदबा रहा। वह अपने राजनीतक प्रभुत्व के दबदबे के कारण पिछले विधानसभा चुनाव में तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। जोधपुर में इनके अलावा जसवंत राज मेहता ने वर्ष 1952 में निर्दलीय तथा इसके अगले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में चुनाव जीतकर अपनी प्रतिष्ठा कायम की जबकि भाजपा उम्मीदवार जसवंत सिंह विश्नोई ने भी वर्ष 1999 एवं 2004 के चुनाव जीता और अपना राजनीतक प्रभुत्व जमाया। इस बार जोधपुर से केन्द्रीय राज्य मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के सामने अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती रहेगी वहीं कांग्रेस अपना फिर से दबदबा कायम करना चाहेगी।
इसी तरह श्री मिर्धा वर्ष 1971 में पांचवीं लोकसभा के चुनाव में नागौर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़कर पहली बार लोकसभा पहुंचे। इसके बाद उन्होंने इसके अगले छठी और सातवीं लोकसभा का चुनाव जीतकर अपना राजनीतिक दबदबा कायम किया। इस दौरान उन्होंने वर्ष 1980 का चुनाव कांग्रेस (यू) के उम्मीदवार के रुप में जीता।
इसके बाद उन्होंने आठवीं लोकसभा का चुनाव लोकदल के प्रत्याशी के रुप में लड़ा था लेकिन वह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास मिर्धा के सामने चुनाव हार गये। वर्ष 1989 के नौवीं लोकसभा चुनाव जनता दल की टिकट पर लड़ा और जीत हासिल कर अपना राजनीतिक प्रभुत्व फिर कायम किया। इसके बाद वह कांग्रेस में लौट आये और वर्ष 1991 एवं 1996 के लोकसभा चुनाव में फिर जीत दर्ज अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा बरकरार रखी। उन्होंने छह बार लोकसभा का चुनाव नागौर से ही जीता। इस दौरान वह केन्द्र सरकार में मंत्री रहे। इससे पहले उन्होंने वर्ष 1952 में राजस्थान विधानसभा का चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने और इसके बाद राज्य सरकार में विभिन्न विभागों के मंत्री भी रहे।
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