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हस्त एवं शिल्पकला को संरक्षित करने की पहल का निर्णय

जयपुर, 02 जून (वार्ता) राजस्थान में उद्योग विभाग ने प्रदेश की हस्त एवं शिल्पकला को संरक्षित एवं सवंर्द्धित करने के लिए विशेष पहल करने का निर्णय लिया है।
विभाग के आयुक्त डॉ. कृष्णा कांत पाठक की अध्यक्षता में आज यहां आयोजित एक बैठक में यह निर्णय लिया गया। श्री पाठक ने बताया कि अब बच्चों, युवाओं, युवतियों और परंपरागत शिल्प से जुड़ने के इच्छुक कलाकारों को हस्तशिल्प के गुर की जानकारी विशेषज्ञों द्वारा दी जाएगी।
उन्होंने बताया कि विभाग इस तरह की कार्ययोजना तैयार कर रहा है, जिसमें इन क्षेत्रों के विशेषज्ञों और इन कलाओं को सीखने के इच्छुकों को एक साझा मंच उपलब्ध कराया जा सके वहीं इन कलाओं का संरक्षण एवं संवर्द्धन होने के साथ ही नई पीढ़ी को इन शिल्पों से जोड़कर उन्हें हस्तशिल्पी और व्यवसायी बनाने की राह दिखाइ जा सके। इसके साथ ही लघु एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा भी दिया जा सकेगा।
उन्होंने कहा कि साझा मंच में शिल्प गुरुओं को जोड़ते हुए गुरु शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाया जाएगा। विभाग द्वारा इस तरह का अवसर उपलब्ध कराया जाएगा जिससे सात, दस या पन्द्रह दिवस के सत्रों का आयोजन किया जा सकेगा। इस अभियान में शिल्प गुरुओें, पुरस्कृत शिल्पकारों, राज्य की इस क्षेत्र में कार्य कर रहे संस्थाओं से आग्रह किया जाएगा कि वे आगे आएं और लोगों को इन कलाओं के गुर सीखाकर भावी पीढ़ी तैयार करें। इन सत्रों के आयोजन में सभी की सहभागिता तय की जाएगी वहीं स्थान एवं आवश्यक सुविधाएं उद्योग विभाग द्वारा उपलब्ध कराया जाएगा।
उन्होंने बताया कि प्रदेश के हस्तशिल्प यथा हैण्ड ब्लॉक प्रिंटिंग, बंधेज, टाई एण्ड डाई, दाबू, बगरु, बाडमेरी और अजरख प्रिंट, तारकशी, कुंदन मीनाकारी, टेराकोटा, थेवा कला, मूर्ति कला एवं पत्थर पर नक्कासी तथा पत्थर के उत्पादों का निर्माण, कोटा डोरिया, बांधनी, गोटा-पत्ती, जयपुरी रजाई, खेस-दरी निर्माण, लाख शिल्प, उस्ता कला, पेंटिंग, मिनिएचर पेंटिंग, ब्लू पॉटरी, क्ले आर्ट, जूतियां एवं मोजड़ी, हैण्डमेड पेपर, स्टोन कार्बिंग, कठपुतली आदि की दुनिया भर में विशिष्ट पहचान है।
जोरा
वार्ता
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